सीमाओं मे मत बांधो
सीमाओं मे मत बांधो, मैं बहता गंगा जल हूँ ।
गंगोत्री से गंगा सागर
गजल सुनाती आई
गंगा की लहरों से निकली –
मुक्तक और रुबाई ।
भावों मे डूबा उतराता , माटी का गीत गजल हूँ
सीमाओं मे मत बांधो , मैं बहता गंगा जल हूँ ।
यमुना की लहरों पर –
किसने प्रेम तराने गाये ?
राधा ने कान्हा संग –
जाने कितने रास रचाए ?
होंगे महल दुमहले कितने, मैं तो ताजमहल हूँ
सीमाओं मे मत बांधो , मैं बहता यमुना जल हूँ ।
मैं कबीर का ढाई आखर,
मेरा कहाँ ठिकाना ?
इस दुनियाँ मे लगा हुआ है
सबका आना – जाना ।
कबीरा का ताना बाना मैं, ढाका का मल मल हूँ
सीमाओं मे मत बांधो मैं बहता नदिया जल हूँ ।
--- मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह वाह आ० जबरदस्त उत्कृष्ट गीत हुआ अतिसुन्दर .बहुत- बहुत बधाई आपको.
प्रिय श्री लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाला जी ,
प्रशंसा के लिए आभार !
Shri Omprakash Kshatriya Ji,
आपकी प्रशंसा मन को भायी , हार्दिक आभार स्वीकारें !
श्रद्धेय श्री प्रदीप कुशवाहा जी ,
भागीरथी गंगा कब बंधना चाहती हैं , किन्तु ईंसान की फितरत तो देखिये - गंगा को मनेरी (उत्तरकाशी) मे , टिहरी बांध (टिहरी) मे बांध ही डाला है । अब ना जाने कंहा कंहा बाँधेगा ? बंधन मुक्त तो परिंदे हैं । इंसान ने इंसान को जाति , धर्म तथा संप्रदाय के अलावा भी अनेक बंधनो से बांध रक्खा है तभी तो मेरा पागल मन इनसाँ को ढूंढा करता है ~~~~~~~~ ! रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।
श्रद्धेय गिरिराज भण्डारी जी,
रचना ने आपके अन्तर्मन को छुआ , आपकी प्रशंसा से ऐसा आभास होता है । हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ।
श्री जीतेंद्र गीत जी,
रचना आपको अच्छी लगी , आभार स्वीकार करें ।
सुश्री मीना जी, वंदना जी
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !
सुंदर और सार्थक गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी
इस दुनियाँ मे लगा हुआ है
सबका आना – जाना ।
कबीरा का ताना बाना मैं, ढाका का मल मल हूँ................... शानदार सर जी . वास्तविकता उजागर कर गई . ये पंक्तिया . बधाई .
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