एनजीओ खूब बने, करे न सेवा ख़ास
टैक्स बचे इज्जत बढे,धन की करते आस
धन की करते आस,नहीं कुछ सेवा करते
फैशन बना विशेष, ओट में पीया करते
करके बन्दर बाट, खूब लूटकर जीओ
धन अर्जन की प्यास लिए बने एनजीओ |
(२)
लोहा मनवाते रहे, करते वे अभिमान
गर्व रहा नहीं स्थाई,रखे न इसका भान
रखे न इसका भान,ज्ञान न चक्षु के खोले
जीवन का है मोल,सोच समझ के न बोले
कहते है कविराय, शिल्प में सोहे दोहा
करते जो सम्मान, मान उसका ही लोहा |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपने सही पकड़ा श्री राम भाई, दरअसल दोहे की दूसरी पंक्ति को गलती से अंतिम पंक्ति में डालने से यह गड़बड़ी हो गयी |
अब संशोधित कर दिया है | आपका हार्दिक आभार
शुक्रिया श्री श्याम नारायण वर्मा जी
एनजीओ खूब बने, करे न सेवा ख़ास
टैक्स बचे इज्जत बढे,धन अर्जन की आस
फैशन बना विशेष, नही कुछ सेवा करते
करते बन्दर बाट, ओट में पीया करते
नियमों की ले ओट, खूब लूटकर जीओ
धन अर्जन के आस लिए बने एनजीओ |///इस कुंडलियां छंद पर पुनः गौर फरमाएं आदरणीय //सादर
लाजवाब कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई ...... |
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