झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |
मीठा लगता झूठ है, सनी चासनी बात
पोल खुले से पूर्व ही, दे जाता आघात |
जैसी जिसकी भावना, वैसा बने स्वभाव
मन में जैसी कामना, मुखरित होते भाव |
जितनी सात्विक भावना, तन में वैसी लोच
पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |
हिंसा की ही सोच में, प्रतिहिंसा के भाव,
सत्य अहिंसा भाव का, सात्विक पड़े प्रभाव |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपका हार्दिक आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी |
"झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |///////////यह दोहा मै नहीं समझ पाया" हो सकता है मै समझा नहीं सका हो | पर -
- मेरे कहने का आशय यह है कि आदमी सच भी दूसरों को चोट पहुचाने के लिए बोलता है | क्योंकि उसे मजा सच में नहीं कडुवेपण में आता है | अर्थात हमारा झूठ मीठा होता है जिसे हम चलना चाहते है |
दोहे सार्थक लगे यह जानकार ख़ुशी हुई | आपका हार्दिक आभार श्री विजय निकोरे जी
सुंदर प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण जी ,हार्दिक बधाई आपको ......... सादर
झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |///////////यह दोहा मै नहीं समझ पाया
जितनी सात्विक भावना, तन में वैसी लोच
पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |/////////////यहाँ अटकाव सा लगा
सादर...............
सार्थक संदेश देते दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
दोहे पसंद कर सराहने के लिए धन्यवाद श्री लक्ष्मण धामी जी
दोहे पसंद करने के लिए आभार श्री गिरिराज भंडारी जी
आदरणीय भाई लक्ष्मण जी , गूढ़ सन्देश देते दोहों के लिये हार्दिक बधाई.
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर सन्देश देते दोहों के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥
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