टिकती है क्या झूठ पर, रिश्ते की बुनियाद
झूठ बोल हर बात में, करते सदा विवाद |
करते सदा विवाद, सवाल पूछ कर देखे
मुखड़ा करे बयान, होंठ व ननन जब निरखे
कहते है कविराय. कभी न सत्यता छिपती
रिश्ते की बुनियाद कभी न झूठ पर टिकती ||
(2)
डाली डाली में जहाँ,फूलों की मुस्कान,
मेरा देश अखंड वह, भारतवर्ष महान
भारतवर्ष महान,छटा है मोहक न्यारी
दुल्हन जैसा रूप,जहां खिलती हर क्यारी
लक्ष्मण सबको भान,यहाँ के हम सब माली
पहन नया परिधान, सजे पुष्पों से डाली |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
दुसरे छंद को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ जी | प्रथम छंद पर पुनः प्रयास करता हूँ | सादर
आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपका दूसरा छंद बहुत ही अच्छा बन पड़ा है.
सादर बधाई
सुंदर भाव युक्त कुंडलिया हेतु बधाई ।
छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी, और श्री नीरज कुमार "नीर" जी
कुंडलियाँ छंद सराहने के लिए आभार स्वीकारे आदरणीया सरिता भाटिया जी
कुंडलियाँ छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी एवं श्री श्याम नारायण वर्मा जी
वाह बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ
आदरणीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर कुंडलियाँ रचना के लिये आप्को बहुत बधाइयाँ । पहली कुंडलियाँ के गेयता की कमी लग रही है ॥
भाई लक्ष्मण जी हार्दिक बधाई खुबसूरत कुण्डलिया के लिए
लाजवाब कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई...... |
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