For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है

मिजाज मेरे शहर का रंगीन बडा है ।

हर मौसम यहाँ का बेहतरीन बडा है ।।

आंखो मे सुरमा मुहँ मे पान रचा है ।

हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है ।1।

शोखिया अदाये वो इठलाती जबानी ।

यहाँ हुस्नो शबाब नाजनीन बडा है ।2।

है झील का किनारा वो लहरो की मस्ती ।

हर नजारा यहाँ दिल नशीन बडा है ।3।

हरसू है बस प्यार मोहब्बत की बाते ।

नफरत  यहाँ जुर्म संगीन बडा है ।4।  

हो इक शहर ऐसा भी इस जहाँ मे कही ।

तेरा ये ख्बाब “बसंत” हँसीन बडा है  ।5।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 484

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:18am

आदरणीय ब्रजेश जी सादर नमन, धन्यबाद शुक्रिया आप ने रचना को अपना समय और आशीष दिया .... इसी मंच  और आप लोगो से  सीख रहा हू । और आप लोगो के सामने ला रहा हू आप लोगो का आशीष मिलता रहे ये ही कामना करता हू ...धन्यवाद . 

Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:15am

आदरणीय गिरीराज जी सादर प्रणाम ..... रचना को आप का आषीश मिला उसके मिल्ये बहुत बहुत शुक्रिया  ...  अभी गजल कहने का  प्रयास कर रहा हू . बस आप गुणी जनो का अषीश मिलता रहे ये ही आशा करता हू ..... 

Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:10am

आ0 शयाम जी बहुत बहुत धन्यबाद शुक्रिया .....

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2014 at 10:32pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

ग़ज़ल की जानकारी देने वाले लेख इस मंच पर उपलब्ध हैं. उन्हें देख लें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2014 at 6:02pm

आदरनीय बसंत भाई , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥ अगर आपने ग़ज़ल कही है तो सभी मिसरे एक ही बह्र मे नही लग रहे हैं ।बह्र का उल्लेख आपने नही किया है , अतः कुछ कहना मुश्किल है ॥

Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2014 at 4:59pm
बहुत सुन्दर गज़ल ...............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
8 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service