करने लगे है वो भी हमपे ऐतबार थोडा थोडा ।
उनको भी हो गया है हमसे प्यार थोडा थोडा ॥
रहते थे जो परदो मे छुप छुप के कल तलक ।
अब होने लगा है उनका भी दीदार थोडा थोडा ॥
कहते थे वो इश्क विश्क बाते है फिजूल की ।
चढने लगा है उनपे भी ये खुमार थोडा थोडा ॥
उडी है नीँद रातो की करार छिन गया दिन का ।
अब रहने लगे है वो भी बेकरार थोडा थोडा ॥
है हक चुमना भंबरो का फूलो को बेधडक ।
हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा थोडा ॥
गुजारे है पल पल हमने उनके इंतजार मे ।
करते है वो भी मेरा इंतजार थोडा थोडा ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
भाई बसंतजी, आप ग़ज़ल लिखने के अलावे ग़ज़ल पर कितना समय देते हैं यह जानना आवश्यक होगा.
शुभ-शुभ
है हक चुमना भंबरो का फूलो को बेधडक ।
हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा थोडा ॥---------------सुंदर कहन
‘भंबरो‘ ??
इस प्रस्तुति पर बधाई
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