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हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा थोडा

करने लगे है वो भी हमपे ऐतबार थोडा थोडा ।

उनको भी हो गया है हमसे प्यार थोडा थोडा ॥ 

रहते थे जो परदो मे छुप छुप के कल तलक ।

अब होने लगा है उनका भी दीदार थोडा थोडा ॥

कहते थे वो इश्क विश्क बाते है फिजूल की ।

चढने लगा है उनपे भी ये खुमार थोडा थोडा ॥

उडी है नीँद रातो की करार छिन गया दिन का ।

अब रहने लगे है वो भी बेकरार थोडा थोडा ॥

है हक चुमना भंबरो का फूलो को बेधडक ।

हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा थोडा  ॥

गुजारे है पल पल हमने उनके इंतजार मे ।  

करते है वो भी मेरा इंतजार थोडा थोडा ॥     

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 8:06pm

भाई बसंतजी, आप ग़ज़ल लिखने के अलावे ग़ज़ल पर कितना समय देते हैं यह जानना आवश्यक होगा.

शुभ-शुभ

Comment by रमेश कुमार चौहान on May 1, 2014 at 11:08am

है हक चुमना भंबरो का फूलो को बेधडक ।

हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा थोडा  ॥---------------सुंदर कहन

‘भंबरो‘ ??
इस प्रस्तुति पर बधाई

कृपया ध्यान दे...

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