बचपन का गाँव
नीम की छांव
छोटा सा कोना
कच्चा सा आँगन
बहुत याद आता है ।
गाँव के मेले
ढेरों झमेले
दोनें में चाट
बर्फ को गोला
बहुत याद आता है ।
बचपन की सखियाँ
डिब्बे में गुड़ियाँ
छोटा सा गुड्डा
उन से बतयाना
बहुत याद आता है ।
सावन के झूले
हाथों में मेंहदी
काँच की चूड़ी
निवौली की पायल
बहुत याद आते है ।
बाबा की डांटे
माता से बातें
भैया के झगड़े
कच्चे वो आम
बहुत याद आता है
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अदरणीय पाण्डेय सर शुक्रिया सादर !
नोस्टेल्जिक करते हुए इस प्रयास हेतु शुभकामनाएँ.
आदरणीय श्री नीरज जी अदरणीया सरिता जी मेरी छोटी सी रचना को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार /सादर
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
जी आदरणीया कल्पना जी बचपन के दिन भला किसे भूलते हैं
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