12-)
तोल-मोल कर जब ये बोले ।
दिल के तालों को ये खोले ।
कभी ना होती इसे थकान,
क्या सखी साजन ?
ना सखि जुवान !
13-)
भारत माँ का सच्चा लाल ।
लंबा कद और ऊँचा भाल ।
इस पर बनते लाखों गान,
क्या सखि साजन ?
ना सखि जवान !
14-)
सर्दी गर्मी या हो बरसात।
हर दम रहता है तैनात ।
कभी ना करता आले बाले ,
क्या सखि छाते ?
ना सखि ताले!
15-)
गर्मी में मिलता ना मान ।
सर्दी में ये सब की जान ।
कम हो या हो ज्यादा आय ,
क्या सखि कम्बल?
ना सखि चाय !
16-)
लंबी छोटी फैली चहुं ओर ।
आते जाते मिलते छोर ।
मिल जाती हें इन में सखियाँ ,
क्या सखि बगियाँ ?
ना सखि गलियाँ !
17-)
आसमान से ऊँचा स्थान ।
सदा रखते हम सब का मान ।
उनके साथ गई थी काबुल ,
क्या सखि साजन ?
ना सखि बाबुल !
18-)
दिखता है नूरानी चेहरा ।
सुंदरियों का इस पर पहरा ।
सब अपने को करते अर्पण ,
क्या सखि साजन ?
ना सखि दर्पण !
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. आपने आदरणीय योगराजभाईसाहब के सुझावों पर अवश्य ध्यान दिया होगा.
आदरणीया प्रयासरत रहें.
सादर
आदरणीया अंजु दी सुधार कि पूरी कोशिश कि है ।सुझाव के लिए बहुत -बहुत आभार .....
कल्पना जी आप अपनी कह मुकरियों को थोड़ा सुधार कर लें , जैसा कि आ0 प्राची जी व आ0 योगराज जी ने बताया है । आपकी कह मुकरियाँ निसंदेह और मुखरित हो जाएंगी ।
आदरणीया कल्पना रामानी जी आप सब गुणी जनों की आभारी हूँ ।आप सभी का मार्गदर्शन बना रहा तो हो सकता है ,कि कुछ लिख पाऊँ; वरना अभी मेरी कलम घुटनों के बल चलना सीख रही है सादर .....
आदरणीया कल्पना जी आपका प्रयास बहुत अच्छा है, निश्चित ही आगे उम्दा लिख सकेंगी। बाकी मार्गदर्शन संचालकों का तो मिलता ही रहेगा। शुभकामनाएँ
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, प्राची जी और सरिता जी ये हमारा कह मुकरियों में प्रथम प्रयास था और गलतियाँ भी बहुत की लेकिन आप सभी के धैर्य पूर्ण शिक्षण ने मुझे बहुत सहारा दिया। इस के लिए आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया!!!
१२ वीं मुकरी में "जोड़े-बोले", १३वीं में "लाल-नाज़" १५वीं में "मांग-जान" तथा १६वीं में "रोज़-छोर" का तुकांत सही नहीं है आ० कल्पना मिश्रा बाजपेई जी. इन्हें पुन: देखकर सुधारें।
आदरनिया सरिता जी आप का सुधार सर आँखों पर और सुझाव के लिए बहुत -बहुत आभार आप का सादर ।
आदरणीय कल्पना जी
वास्तव में आपकी कह मुकरियां बहुत अच्छी हैं परन्तु उसमें एक कमी जो नज़र आ रही है वो है आप पहेली साजन के बारे में ही सुझा रही हैं मैंने एक कह मुकरिया को ठीक करने की कोशिश की है
विस्तर पर है सब की माँग ।
सर्दी में ये सब की जान ।
कम हो या हो ज्यादा आय ,
क्या सखि साजन ?
ना सखि चाय !
इसे ऐसे कीजिये
विस्तर पर है सब की माँग ।
सर्दी में ये सब की जान ।
कम हो या हो ज्यादा आय ,
क्या सखि कम्बल ?
ना सखि चाय !
कह मुकरी विधा में आपकी दूसरी रचना देखना का भी अवसर मिला...
कुछ बातों पर अवश्य ही गौर कीजिये :-
जोड़े-बोले , लाल-नाज़ , मांग-जान, रोज़-छोर के तुक मिलान पुनः देख कर दुरुस्त कीजिये..यह तुकांतता क्या मान्य हो सकती है ?
सर्दी गर्मी या हो बरसात।
हर दम रहता है तैनात ।
कभी ना करता आले बाले ,
क्या सखि साजन ?
ना सखि ताले!..........................यहाँ ताले बहुवचन है और ऊपर तीसरी पंक्ति में वर्णन एक वचन में है , ऐसा क्यों ?
मेल कराती सब का रोज ।......................साजन के लिए कराती क्रिया कैसे ली जा सकती है
आते जाते मिलते छोर ।
मिल जाती हें इन में सखियाँ ,.....................साजन में सखियाँ मिल जाती हैं .....समझ से बाहर है
क्या सखि साजन?
ना सखि गलियाँ !
आदरणीया कल्पना मिश्रा जी कृपया इस विधा की नजाकत को समझने का प्रयास करें..अन्य लोगों की कह मुकरियाँ भी पढ़ें समझें, साथ ही उनपर हुई चर्चाओं को भी देखें बहुत कुछ स्पष्ट होगा
शुभेच्छाएं
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