मेरा परिचय क्या है?
क्या एक मानवी का ?
अथवा किसी की दासी का,
क्या मेरा परिचय यही है?
कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
मैं बहुत कुछ होकर भी,
स्वयं में कुछ नहीं हूँ।
क्या पुरुष की सहचारिणी
होने के कारण,मैं अस्तित्वहीन हूँ?
क्या एक स्त्री होने के कारण,
मैं केवल अबला,असहाय हूँ?
क्या पत्नी होना कोई अभिशाप है,
जो स्त्री को पुरुष की दासी बना देता है,
अथवा पुरुष सर्वश्रेष्ठ है,
जो स्त्री और प्रकृति सबका
अधिकारी बन जाना चाहता है।
जो चाहता ही नहीं कि उससे
पृथक नारी की कोई सत्ता हो?
जो चाहता है कि वही उसका
अधिकारी हो और वह मात्र
उसकी दासी हो,उसकी अनुचरी हो।
वह नारी का सर्वस्व हो,
किन्तु नारी का उस पर
किंचित मात्र भी अधिकार न हो।
नारी तो उसके लिए भोग्या है,
सेविका है,सहायिका है,समर्पिता है।
किन्तु वह स्वयं कब -कब
समर्पित हुआ है नारी के सम्मुख?
वह कब सहयोगी बना है नारी के लिए?
समर्पण तो केवल नारी के लिए है,और
पुरुष;उसके लिए तो केवल अधिकार है,
नारी को भोगने का,उसे पीड़ित करने का।
उसे मात्र प्रताड़ित करने का,
उस पर अधिकार जताने का,
उसके मन को जलाने का,
उसकी उपेक्षा करने का,
उसकी भत्र्र्र्र्र्सना करने का,
उसे अपमानित करने का,
उसका बलात्कार करने का।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
आदरणीया सावित्री जी
आपकी रचना पढ़ी . अच्छे प्रश्न .
समय बहुत बदल गया है. नारी का सम्मान सदेव रहा है. अपवाद हर क्षेत्र में होता है. बैसाखी के सहारे चलना त्याग दें. वर्ना कमजोर दिखने पर लाभ लेने वालों की कमी नही है.
सादर बधाई.
गिरिराज जी,आपका आभार !
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीया सावित्री जी ॥
आ० जितेन्द्र जी, आपके प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु आपका आभार !
आ० कल्पना जी सादर नमस्कार !
उत्साहवर्धन हेतु आपकी आभारी हूँ,ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये।
आ० शिज्जू जी,सराहना हेतु आपका आभार !
इस सुंदर भावपूर्ण रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया सावित्री जी
आदरणीया सावित्री जी, मन के भावों को बहुत मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है आपने। इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया सावित्री जी इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
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