बहुत शोर है यहाँ
बहुत ज़्यादा
मैं कैसे वो आवाज़ सुन सकूँ
जो मेरे लिए है
कितनी ही देर कानों पर हाथ लगा
सब अनसुना करती रही
लेकिन
शोर इतना है कि मेरी हथेलियों को
भेद कर मेरे कानों पर बरस पड़ता है
मष्तिष्क की हर नब्ज़ थर्राने लगी है
नसों में आक्रोश भर गया है
अजीब शोर है यहाँ
जलन, ईर्षा, द्वेष, अपमान का,
भेदभाव का शोर
धधकता, जलाता शोर
इस तरहा बढ़ता जाता है कि
इच्छाशक्ति इसके प्रभाव से
क्षीण होती जाती है
कैसे सहन करूँ?
किस तरहा निर्वाह करूँ?
कई बार निश्चय किया
आवाज़ उठाऊँ, परास्त कर दूँ
इन कर्कश स्वरों को
पर अपनों से युद्ध,
जीतना और
शिकस्त देना आसान नहीं है
मन का एक कोना
रोता है, बिलखता है जो अक्सर
भय से, आश्चर्य से घटित हो रहे
सिलसिलेवार आघात पर चौंकता है
रोज़ सवाल उठता है
कैसे अपने ही
घातक प्रहार कर देते हैं मन पर,
ह्रदय पर, भावनाओं पर
जिसकी चोट सीधे आत्मा को लगती है
और जिसके ज़ख्म
गहरे बहुत गहरे होते जाते हैं
जो दुखते है, चुभते है और रिसते हैं
ये कैसा शोर और किस कारण
आपसी द्वेष, नासमझी या
आपसी प्रतियोगिता के कारण
अपनों का होना सहारा होना है या
इस प्रकार के बैर का होना
जैसे निर्रथक, खोखला, बेमायने और
बेमतलब होना……..
इस शोर को ख़त्म करना है
प्रयत्न बहुत हुए अब तक पर
अब प्रण करना है
इस शोर में
अपनी आवाज़ को बुलन्द करना है
हाँ अब.........
सब को ख़ामोश करना है …….…
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
प्रियंका……
Comment
बहुत अच्छी रचना आदरणीया प्रियंका जी, अंतर की आवाज को बहुत ही सुंदरता से संजोया है आपने। आपको हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
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मन का एक कोना
रोता है, बिलखता है जो अक्सर
भय से, आश्चर्य से घटित हो रहे
सिलसिलेवार आघात पर चौंकता है//
आन्तरिक शोर का आपने बहुत सही चित्रण किया है।
हम सभी कभी न कभी इस शोर को सुनते हैं और भीतर
असहाय-सा अनुभव करते हैं ... न उस से दूर जा सकते हैं ,
न उसके पास रह सकते हैं। इस गंभीर रचना के लिए आपको
हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रियंका जी। ऐसे ही लिखते रहिए।
अजीब शोर है यहाँ
जलन, ईर्षा, द्वेष, अपमान का,
भेदभाव का शोर.............................. शानदार बात कही है आप ने . बधाई
आदरणीया प्रियंका जी , बहुत सुन्दर बात उठाई है , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
आदरणीया प्रियंका जी बहुत खूबसूरत रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
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