उत्तुंग शृंखलाओ को
चीर कर
रफ्ता रफ्ता
उतरती चली आती है
सदा ही अवनत
मचलती लहराती वो
करती धरा का आलिंगन
सहर्ष ..... वलयित हो
मुसकाती
बढ़ती जाती निरंतर
सागर की बाँहों मे
समा जाने को विकल
अद्भुत निरखता सौम्य रूप
कुछ उच्छृंखल
राह के अवरोध समेट
तरण तारिणी
सागर से मिलन की
मधुर बेला मे
पूर्ण समर्पण लखता
अहा ! क्या ही अद्भुत
विहंगम दृश्य.......
धारा का जलध से संगम
कामिनी सी चली
वो राग द्वेष से परे
तोड़ कर तट बंध सभी ..................................
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
तरंगिणी के सागर में मिल जाने का सुन्दर वर्णन
बधाई आ० अन्नपूर्णा जी
सुन्दर भाव प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ. अन्नपूर्णा जी
अति सुन्दर चित्रण । हार्दिक बधाई, आदरणीया अन्नपूर्णा जी।
आदरणीय जितेंद्र जी आपका आभार ।
आदरणीय धामी जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय बृजेश जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय नीरज कुमार 'नीर' जी आपका आभार ।
आदरणीय शिजू शकूर जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय कुशवाहा जी आपका हार्दिक आभार ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी
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