भारतीय किसान
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जय जवान जय किसान
जग का नारा झूंठा
भाग्य किसान कैसा तेरा
प्रभू भी तुझसे रूठा
लेकर हल खेत में
नंगे पाँव तू जाए
मखमली कालीन पे
वणिक विश्राम पाए
भरता सगरे जग का पेट
खुद है भूखा सोता
बिके फसल तेरी जब
कर्जा कम न होता
हाय रे किस्मत तेरी
कैसा भाग्य अनूठा
जय जवान जय किसान
जग का नारा झूंठा
देता अपना खून पसीना
इक दाना तब बनता
बाजार जाये जब फसल
भाव न पूरा मिलता
उधार ले खाद और पानी
बीज जमाए न जमता
कृषि रक्षा उपकरणों में
काला धंधा है चलता
व्यापारी और सरकार ने
आपस में है रिश्ता गूंठा
जय जवान जय किसान
जग का नारा झूंठा
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२३.०३.२०१४
Comment
आदरणीय श्री भंडारी सर जी
सादर
आप किसानो की दशा से भली भांति परिचित हैं
सादर आभार .
आदरणीय श्री हेमंत जी
सादर
कोई भी इनकी दशा बदल नही सका है ,
आभार
आदरणीय श्री बाग़ी जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
बहुत सिखाया है आपने, अभी आप व्यस्त होंगे, जब समय हो संशोधन देने का कष्ट करें. सादर सस्नेह
आदरणीय प्रदीप भाई , किसानो की बुरी हालत को बहुत अच्छे से बयान किया है आपने , बहुत बहुत बधाई ॥
aksharash satya aadarniya pradeep ji . jo sare desh ka pet bharata hai usako hi bhookha sona padata hai. sadar..
जय जवान जय किसान
जग का नारा झूंठा
खरी खरी ही सही पर बात तो सही है, एक दुखती रग को छेड़ दिया है आदरणीय, सुन्दर भाव, शिल्प पर और समय चाहत है, बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय श्री ब्रजेश जी
सादर
आपके हस्ताक्षर मुझे संतोष देते हैं
आभार
आदरणीय श्री शिज्जू शकूर साहब जी
किसानो की दशा बहुत ही खराब है .
सादर आभार
आदरणीय प्रदीप जी, बहुत-बहुत बधाई इस भावाभिव्यक्ति पर!
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा सर आपने किसानों की दुर्दशा को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
सादर,
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