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भारतीय किसान (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)

भारतीय किसान 

-----------------

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा  

भाग्य किसान  कैसा तेरा

प्रभू भी तुझसे रूठा 

लेकर हल खेत में 

नंगे पाँव तू जाए 

मखमली कालीन पे

वणिक विश्राम पाए 

भरता सगरे जग का पेट 

खुद है  भूखा सोता 

बिके फसल  तेरी जब 

कर्जा कम न होता 

हाय रे किस्मत तेरी 

कैसा  भाग्य अनूठा 

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा 

देता अपना खून पसीना 

 इक  दाना तब बनता 

बाजार जाये जब फसल 

भाव  न पूरा  मिलता 

उधार ले  खाद और पानी 

बीज जमाए  न जमता 

कृषि  रक्षा उपकरणों में 

काला  धंधा है चलता 

व्यापारी और सरकार ने 

आपस में है रिश्ता गूंठा 

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा 

मौलिक /अप्रकाशित 

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२३.०३.२०१४

Views: 629

Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 24, 2014 at 7:50pm

आदरणीय श्री भंडारी सर जी 

सादर 

आप किसानो की दशा से भली भांति परिचित हैं 

सादर आभार .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 24, 2014 at 7:49pm

आदरणीय श्री हेमंत जी 

सादर 

कोई भी इनकी दशा बदल नही सका है , 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 24, 2014 at 7:47pm

आदरणीय श्री बाग़ी जी 

सादर 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

बहुत सिखाया है आपने, अभी आप व्यस्त होंगे, जब समय हो संशोधन देने का कष्ट  करें. सादर सस्नेह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 10:29am

आदरणीय प्रदीप भाई , किसानो की बुरी हालत  को बहुत अच्छे से बयान किया है आपने , बहुत बहुत बधाई ॥

Comment by hemant sharma on March 23, 2014 at 11:21pm

aksharash satya aadarniya pradeep ji . jo sare desh ka pet bharata hai usako hi bhookha sona padata hai. sadar..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 23, 2014 at 9:01pm

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा  

 

 

खरी खरी ही सही पर बात तो सही है, एक दुखती रग को छेड़ दिया है आदरणीय, सुन्दर भाव, शिल्प पर और समय चाहत है, बधाई स्वीकार करें।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 8:15pm

आदरणीय श्री ब्रजेश जी 

सादर 

आपके हस्ताक्षर मुझे संतोष देते हैं 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 8:14pm

आदरणीय श्री शिज्जू शकूर साहब जी 

किसानो की दशा बहुत ही खराब है . 

सादर आभार 

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 8:09pm

आदरणीय प्रदीप जी, बहुत-बहुत बधाई इस भावाभिव्यक्ति पर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 23, 2014 at 7:08pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा सर आपने किसानों की दुर्दशा को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
सादर,

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