एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले ....
पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम |
आईना हैं, खुद में अब पत्थर भरे बैठे हैं हम |
हम अकेले ही सफ़र में चल पड़ें तो फ़िक्र क्या,
अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम |
जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम |
हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह, सुन्दर ग़ज़ल भाई जी !!
लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम |
wah wah sir ji khoob gazal kahi hai ek shanka hai rakaran karen
हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |
isme kya takabule radeef ka dosh to nahi ho raha hai ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, maaf karna aapse hi seekha hai main shayad poora samajh nahi paya asha hai samadhan karenge,,,,,,,,,,,,,,,,,,,?
आदरणीय वीनस भाई , सिर्फ इतना कहना है - आप ग़ज़लों के सिकंदर हो गए . कोटि कोटि हार्दिक बधाई .
जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |
इस आला और बेहतरीन ग़ज़ल पर पुरज़ोर दाद और मुबारकबाद हाजिर है..
आदरणीय वीनस भाई , क्या तारीफ करूँ आपकी ग़ज़ल की , कहन की , बस ललचा जाता हूँ ॥ शानदार गज़ल कही है भाई , हार्दिक बधाइयाँ ॥
हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम ---- सबके अन्दर की हक़ीक़त है , लाजवाब ॥ ढेरों दाद ॥
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