जुड़े रहे सम्बन्ध (दोहे)- लक्ष्मण लडीवाला
==============
संस्कारी बच्चे बने,बुजुर्ग बने सहाय,
चले राह सन्मार्ग की, वैभव बढ़ता जाय |
मान बढे सहयोग से, सबका हल मिल जाय,
सद्गुण अरु सम्पन्नता, प्रतिदिन बढती जाय |
साथ रहे तो लाभ है, युवा समझते आज,
आजादी भी चाहते, ये तनाव का साज |
बंधिश इतनी ही रहे, टूटे नहि तटबंध
वीणा जैसे तार ये, जुड़े रहे सम्बन्ध |
मन में भरे विकार से, आपस में हो रंज
इसी वजह परिवार में, कसते रहते तंज |
एकल घर परिवार में, पले बढे जो लोग,
रहते है अवसाद में, सतत सतावे रोग |
दो पीढ़ी के मध्य में, रहे सोच में फर्क
सब सदस्य करते रहे, देखो खूब वितर्क |
तालमेल बैठे नहीं, लगे ह्रदय को जर्क,
तभी संयुक्त परिवार में,बढ़ता जाए तर्क |
बंधिहुई ही जब तलक, संबंधों की डोर,
रहे सभी का मान तो, रहे ह्रदय में ठौर |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
सही कह रहे है आप आदरणीय, सार्थक सुझाव का सदैव ही स्वागत है, और जब अनुज से मिले तो और भी ख़ुशी होती है |
हार्दिक आभार आपका श्री सौरभ भाई जी
भाई अरुन अनन्त के सुझाव सार्थक और सटीक हैं, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी. अच्छा लगा जब ऐसी प्रतिक्रियाएँ हमारे युवा पाठक देते हैं.
आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद
दोहे पर गहराई से विशेश्नामक टिपण्णी कर सुझाव देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी |
पारिवारिक परिवेश के सदर्भ में रचित रचना पसंद केरने के लिए हार्दिक आभार श्री विजय श्री जी
आदरणीय लक्ष्मण सर संबंधो पर सुन्दर दोहावली रची है किन्तु आपने इससे कहीं अधिक सुगठित दोहावली रची हैं, निम्न कमियां जो मुझे समझ आईं इंगित कर रहा हूँ कृपया सुधार लें.
बच्चों की परवरिश में,बुजुर्ग बने सहाय,
चले राह सन्मार्ग की, वैभव बढ़ता जाय | परवरिश शब्द के चुनाव के कारण दोहे के प्रथम चरण में प्रवाह बाधित हो रहा है
साथ रहे तो लाभ है, युवा समझते आज,
आजादी भी चाहते, ये तनावे का साज | टाइपिंग त्रुटि की वजह से तनाव , तनावे हो गया है.
बंधिश इतनी ही रहे, टूटे नहीं तटबंध ( द्वतीय चरण में 12 मात्राएँ हैं नहीं को नहिं करने से ठीक हो जायेगा)
वीणा के से तार ये, जुड़े रहे सम्बन्ध | (वीणा के से की जगह वीणा जैसे कर सकते हैं)
दो पीढ़ी के मध्य में, रहे सोच में फर्क
यही संयुक्त घरो में, लगा रहा है जर्क | ( तृतीय चरण में प्रवाह बाधित हो रहा है)
बंधी गाँठ में जब तलक, संबंधों की डोर, ( प्रथम चरण में 14 मात्राएँ बंधी को बँधी कर लीजिये )
रहे सभी का मान यदि,प्रयास करे पुरजोर |
प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
दोहे पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री सचिन देव जी और श्री खिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई,
संयुक्त परिवार का लाभ बताते हुए स्वतंत्र रहने के इच्छुक युवा पीढ़ी को अच्छी सीख दी है , हार्दिक बधाई
आपकी प्रतिक्रिया से मेरा प्रयास सार्थक लग रहा है | आपका हार्दिक आभार श्री जितेन्द्र गीत भाई
आपको दोहे पसंद आये, आपका हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्ण बाजपाई जी, और सरिता भाटिया जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online