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कनक कनक रम बौराया जग

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कनक  कनक रम बौराया जग

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किसको किसको मै समझाऊँ

ये जग प्यारे रैन   बसेरा

सुबह जगे बस भटके जाना

ठाँव नहीं, क्या तेरा-मेरा ??

आंधी तूफाँ  धूल बहुत है

सब है नजर का फेरा

खोल सके कुछ चक्षु वो देखे

पञ्च-तत्व बस, दो दिन मेला

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कनक कनक रम बौराया जग

भौतिक खेल-खेल में डूबा

पीतल चमक खरा सोना ना

बूझ पहेली पूरा-पूरा

हीरा कोयले में मिलता रे !

यह जग  प्यारे बड़ा अजूबा

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सूरज ना धरती से निकले

नहीं समाये ये रे ! धरती

ललचाये ना -'देखा' होता

सार-सार गहि तजि दे थोथा

खाद उर्वरक कर्म न डाले

क्या पायेगा वंजर धरती

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कभी चांदनी कभी अँधेरा

सूखा वर्षा फटता बादल

रचा  कभी पल  मिट  है जाता

देख 'सूक्ष्म' सत का हो कायल

कुदरत ने भेजा रचने को

जोश प्रेम से रच हे! पागल

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लोभ मोह ना करे संवरण

ईहा क्रोध राग अति घातक

शान्ति-त्याग जप जोग वरन कर

ऋणी ऋणात्मक काहे पातक ?

तू न्यारा तेरी  रचना न्यारी

प्रिय बन जा रे ! मन कर पावन

----------------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित"

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

६.२५ पूर्वाह्न -७.०० पूर्वाह्न

करतारपुर जालंधर पंजाब

४.०३.२०१४

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2014 at 9:41am

एक अविश्वसनीय समाचार फेस बुक पर सुन के दिल दहल गया कि अलबेला जी आकस्मिक हम सब को छोड़ चले। … क्या हुआ कैसे हुआ अभी तक कोई ठीक खबर नहीं एक नेक इंसान प्यारा दोस्त दुनिया में हँसते हंसाते सब को विदा हो गया ??? हम सब की श्रद्धांजलि प्रभु उनकी आत्मा को शांति दे और घर परिवार को ये दुःख सहने की शक्ति। । 
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 3, 2014 at 9:58pm

आदरणीय सौरभ भ्राता जी रचना पर आप से प्रोत्साहन मिला बड़ी ख़ुशी हुयी आप के सुझावों पर अमल की कोशिश हो जाए तो अति उत्तम समय बहुत कम होने से ये कमी खलती है आभार
भ्रमर ५


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:28am

बहुत ही सारगर्भित भावनाएँ साझा हुई हैं आदरणीय.
निर्गुण मत की अंतर्धारा स्पष्ट दीख रही है इस प्रवाह में. वैसे कविता के अन्य विन्दुओं को भी अपनाया गया होता तो प्रस्तुति अधिक सार्थक होती. फिरभी, लोकगान-शैली में आपका प्रयास भला भी लगा. साहित्यिक विधाओं के प्रति तनिक आग्रही होना अन्यथा न होगा. ऐसा मेरा मनना है.  
सादर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 30, 2014 at 2:15pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी रचना पर आप का स्नेह मिला ख़ुशी हुयी आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 30, 2014 at 2:14pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई प्रोत्साहन के लिए आभार व्यस्तता इन दिनों बहुत है इसलिए अंतराल ज्यादा है
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 30, 2014 at 2:12pm

प्रिय अनंत जी रचना आप के मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 30, 2014 at 2:11pm

आदरणीय गिरिराज जी प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार सच में जीवन पानी का बुलबुला ही तो है
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 5:32pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई ..जीवन के यथार्थ को दिखती , सन्देश परक सुंदर रचना पर तहे दिल बधाई सादर ...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:04pm

बहुत समय बाद आपकी रचना पड़ने में आई, बहुत बहुत बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 3:47pm

बहुत ही सुन्दर संदेशप्रद रचना आदरणीय भ्रमर जी आपको हार्दिक बधाई

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