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ग़ज़ल :- ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है

ग़ज़ल :- ग़ज़ल मेरी में कोई छल नही है

ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है ,

समस्याएं बहुत हैं  हल नहीं है |

 

तुम्हारी फाइलें नोटों से तर हैं ,

पियासे गांव में एक नल नहीं हैं |

 

तरक्की के नए आयाम देखो ,

बुजुर्गो के लिये एक पल नहीं है |

 

यकीनन आज की सूरत है मुश्किल ,

ये मिलकर तय करें ये कल नहीं है |

 

बहुत रंगीन दिखती है जो रिश्वत ,

ये जेट्रोफा है कोई फल नहीं है |

 

तुम अपनी लिस्ट को फांसी चढा दो ,

अगर उस लिस्ट में अफजल नहीं है |

 

समीक्षक है तो होगा अपने घर का ,

मुझे खारिज करे ये बल नहीं है |

 

(अभिनव अरुण ०७-०८ फरवरी '११)

 

 

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Comment by Abhinav Arun on March 4, 2011 at 1:09pm
thanks a lot shri  gopal ji for appreciation.
Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 3, 2011 at 2:51am
बहुत खूब अरुण जी
Comment by Abhinav Arun on February 12, 2011 at 8:46am

दो शेर छूट गये थे -

सियासत का हम्माम , हैं सारे नंगे ,

यहाँ बेदाग़ कोई  दल नहीं है |

 

दफ्न खेतों में सीताएं कई हैं ,

जनक के हाथ में अब हल नहीं है |

Comment by Abhinav Arun on February 11, 2011 at 12:54pm

सर्वश्री नीरज जी , राकेश जी ,वीरेंद्र जी ,और आदरणीया वंदना जी आपने ग़ज़ल पसंद की मैं आभारी हुआ |

Comment by neeraj tripathi on February 10, 2011 at 11:04am
बेहतरीन अभिव्यक्ति....शानदार
Comment by Veerendra Jain on February 9, 2011 at 6:06pm

तुम्हारी फाइलें नोटों से तर हैं ,

पियासे गांव में एक नल नहीं हैं |

 

bahut hi umda...

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