For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय हमें क्या दिखा रहा है/गज़ल/कल्पना रामानी

1212212122

समय हमें क्या दिखा रहा है।

कहाँ ज़माना ये जा रहा है।

 

कोई बनाता है घर तो कोई,

बने हुए को ढहा रहा है।

 

बुझाए लाखों के दीप जिसने,

वो रोशनी में नहा रहा है।

 

गुलों को माली ही बेदखल कर,

चमन में काँटे उगा रहा है।

 

कुचलता आया जहाँ उसी को,

जो फूल खुशबू लुटा रहा है।

 

जो बीज बोकर उगाता रोटी,

वो भूख से बिलबिला रहा है।

 

हो बाढ़ या सूखा दीन का तो,

सदा ही खाली घड़ा रहा है।

 

खफा हैं क्यों काफिये बहर से,

गज़ल को ये गम सता रहा है।

 

ये “कल्पना” रब का न्याय कैसा,

दुखों का ही दिल दुखा रहा है। 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 9:27pm

आपकी मन हर्षाती  हुई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 12:43am

कई सार्थक अशार से सजे इस ग़ज़ल के लिए बधाई, आदरणीया कल्पनाजी.

खफा हैं क्यों काफिये बहर से,

गज़ल को ये गम सता रहा है।.............  ग़ज़ब !

सादर

Comment by कल्पना रामानी on April 11, 2014 at 6:42pm

आदरणीय विजय जी,सादर धन्यवाद

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 12:45pm

//कुचलता आया जहाँ उसी को,

जो फूल खुशबू लुटा रहा है।//

गज़ल बहुत अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by कल्पना रामानी on April 7, 2014 at 8:22pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी,उत्साहवर्धन के लिए  सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 7, 2014 at 8:19pm

आदरणीय गिरिराज जी गज़ल के शब्दों पर गौर करके आपने अपने विचार प्रकट किए, बहुत अच्छा लगा। मैंने "दुखों का  ही दिल  दुखा रहा है"ये शब्द बिम्ब स्वरूप लिए हैं। भावार्थ तो वही है। आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 7, 2014 at 8:14pm

आदरणीया कुंती जी, प्रोत्साहित करती हुई सुंदर टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 

Comment by कल्पना रामानी on April 7, 2014 at 8:12pm

प्रिय बृजेश, स्नेहपूर्ण टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by S. C. Brahmachari on April 7, 2014 at 1:48pm
समय हमें क्या सीखा रहा है
कहाँ ज़माना ये जा रहा है ? ----- गजल की हर पंक्ति लाजबाब है । किस पंक्ति की प्रशंसा करूँ , समझ नहीं आता ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2014 at 12:59pm

आदरनीया कल्पना जी , लाजवाब गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ !! अंतिम शे र मे - दुखों के स्थान पर दुखी शायद और अच्छा लगे , सोच के देखियेगा !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service