मात्रिक छंद
असुरों के सुर उच्च हुए हैं, मौन मंत्र सिखलाना होगा।
राम, तुम्हें फिर से कलियुग में, भारत भू पर आना होगा।
ओढ़ चदरिया राम नाम की, घूम रहे चहुं ओर अधर्मी।
धर्म-पंथ उनको दिखलाकर, गूढ़-ज्ञान फैलाना होगा।
मानवता का ढोंग रचाकर, रावण ताज सजा बैठे हैं,।
आग लगा उनकी लंका में, जय का दीप जलाना होगा।
मानवता के मूल्य गिर चुके, रक्षक ही भक्षक हैं सारे।
मूल्य रहें अक्षत हर मन के, ऐसा शंख बजाना होगा।
मर्यादाएँ आब खो चुकीं, बीच भँवर रिश्तों की किश्ती।
हे मर्यादा पुरुषोत्तम! वो बेड़ा पार लगाना होगा।
भोग रहे वनवास घरों में, मात-पिता रहकर एकाकी,
संतानों के सुप्त हृदय में, सेवा-भाव जगाना होगा।
आज तुम्हारे शासन की, हे रघुनंदन! है ओट ज़रूरी,
पामर खाएँ चोट, तुम्हें कुछ ऐसा चक्र चलाना होगा।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी, सलीम जी, लक्ष्मण जी,प्रिय बृजेश जी, अनुराग जी, आदरणीया प्राची जी, रचना का सुंदर टिप्पणियों द्वारा मान बढ़ाने के लिए आप सबका हृदय से आभार
हर शेर अपनी सार्थकता सिद्ध करता हुआ है. मात्रिक ग़ज़ल की गेयता निर्बध हो यही कसौटी है.
दाद कुबूल करें ..
सादर
बहुत उत्कृष्ट भावनाओं को शब्द मिले हैं...
आपकी लेखनी के आगे नत हो जाती हूँ आदरणीया कल्पना जी..सभी अश'आर पसंद आये
बहुत बहुत बधाई
आदरणीय कल्पना दीदी ,
एक सशक्त, भावपूर्ण और आदर्शवादी रचना के लिए तहेदिल से हार्दिक बधाई .
वाह सशक्त रचना बेहद सुन्दर
सादर
आदरणीया---
वाह बहुत सुंदर बड़ी खूबसूरती से
शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल . बहुत बहुत मुबारकबाद
वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई दीदी!
आ॰ मीना जी, राजेश जी, सविता जी, जितेंद्र जी, गीतिका जी, अखिलेशजी, गिरिराज जी, अजयजी, मुकेश जी, आप सबका रचना को स्नेह मिला, लिखना सार्थक हुआ। आप सबका हृदय से आभार/सादर
आ॰ गिरिराज जी, किसी बहर को परिभाषित करना मेरे लिए कठिन है। यह बहर 222222की बंदिश में कही जाने वाली है जिसे अब 121=22...के अनुसार कहने की छूट मिल चुकी है। काफिया,रदीफ़ यथावत रखते हुए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि लय भंग न हो। इसलिए इसे अपनी समझ से मैंने मात्रिक छंद कहा। अधिक जानकारी विद्वान गजलकार ही दे सकते हैं।/सादर
आदरणीया कल्पना दीदी
वाह वाह बहुत सुंदर भाव .. पढ़कर दिल खुश हो गया.. बड़ी खूबसूरती से निभाया है आपने बे'हर को.. शब्दों का खूबसूरत इस्तेमाल . बहुत बहुत मुबारकबाद
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