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  “अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”

“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”

" हाँ भाई..! रामेश्वर ,  दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 3, 2014 at 1:07am

आज के समय में गलत संस्कार , बाजारू संस्कृति और अविश्वास के साथ-साथ इंसान ने अपने अन्दर की आतुरता, जो केवल कुछ सुख पाने के लिए  निर्मित कर रखी है वो भी उसे सही समय या  निर्णय लेने के लिए गंभीर नही बनने देती है .

आपकी बधाई शिरोधार्य है आदरणीय सौरभ जी, स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2014 at 12:47am

जैसी सोच वैसा परिवार. जैसे परिवार वैसा समाज. ऐसे में ही कहना पड़ जाता है - को बड़-छोट कहत अपराधू.. 

पिता द्वारा डाले गये संस्कार, आजकी बाज़ारू संस्कृति का भारी दवाब और आपसी अविश्वास, ये तीनों मिलकर और क्या तस्वीर प्रस्तुत कर सकते हैं ?  टीस-सी उभर आयी.  

लघुकथा पर सार्थक प्रयास के लिए बधाई !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 11, 2014 at 1:39pm

आपकी प्रतिक्रिया //पूरा चित्र आँखों के आगे तैर गया..// से रचना को सार्थकता का प्रमाण मिलता है,  बधाई सहर्ष शिरोधार्य है .आपका ह्रदय से आभार आदरणीया डा.प्राची जी. स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 11, 2014 at 7:59am

उफ़!  उफ़ !

पूरा चित्र आँखों के आगे तैर गया..

सधे हुए कम शब्दों में एक सार्थक सामाजिक कथ्य साँझा करती लघुकथा 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2014 at 10:41pm

आपकी उत्साहवर्धक  सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2014 at 10:39pm

आपने सही कहा आदरणीया मीना दीदी, यह एक कड़वा सच ही है. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढाती रही है, आपका ह्रदय से आभार , स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2014 at 10:27pm

रचना आपको रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक  हुआ आदरणीय विशाल जी, आपका हार्दिक आभार . स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 10:27pm

सुंदर लघु कथा , बधाई आपको आ0 जितेंद्र जी । 

Comment by Meena Pathak on April 10, 2014 at 5:16pm

कड़वा सच .....कम शब्दों मे बहुत कुछ कह गये आप .. बधाई 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 11:35pm

वाह.... कुछ पंक्तियों में लिखी इस लघु कथा के माध्यम से एक बहुत बड़ी और सोचनीय बात कहने की कोशिश की है.... आखिरी पंक्ति मन - मन - मस्तिष्क को बहुत देर तक झंकृत करने में स्क्षम !!!

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