“अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”
“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”
" हाँ भाई..! रामेश्वर , दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आज के समय में गलत संस्कार , बाजारू संस्कृति और अविश्वास के साथ-साथ इंसान ने अपने अन्दर की आतुरता, जो केवल कुछ सुख पाने के लिए निर्मित कर रखी है वो भी उसे सही समय या निर्णय लेने के लिए गंभीर नही बनने देती है .
आपकी बधाई शिरोधार्य है आदरणीय सौरभ जी, स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
जैसी सोच वैसा परिवार. जैसे परिवार वैसा समाज. ऐसे में ही कहना पड़ जाता है - को बड़-छोट कहत अपराधू..
पिता द्वारा डाले गये संस्कार, आजकी बाज़ारू संस्कृति का भारी दवाब और आपसी अविश्वास, ये तीनों मिलकर और क्या तस्वीर प्रस्तुत कर सकते हैं ? टीस-सी उभर आयी.
लघुकथा पर सार्थक प्रयास के लिए बधाई !
आपकी प्रतिक्रिया //पूरा चित्र आँखों के आगे तैर गया..// से रचना को सार्थकता का प्रमाण मिलता है, बधाई सहर्ष शिरोधार्य है .आपका ह्रदय से आभार आदरणीया डा.प्राची जी. स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
उफ़! उफ़ !
पूरा चित्र आँखों के आगे तैर गया..
सधे हुए कम शब्दों में एक सार्थक सामाजिक कथ्य साँझा करती लघुकथा
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपने सही कहा आदरणीया मीना दीदी, यह एक कड़वा सच ही है. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरा मनोबल बढाती रही है, आपका ह्रदय से आभार , स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
रचना आपको रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय विशाल जी, आपका हार्दिक आभार . स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
सुंदर लघु कथा , बधाई आपको आ0 जितेंद्र जी ।
कड़वा सच .....कम शब्दों मे बहुत कुछ कह गये आप .. बधाई
वाह.... कुछ पंक्तियों में लिखी इस लघु कथा के माध्यम से एक बहुत बड़ी और सोचनीय बात कहने की कोशिश की है.... आखिरी पंक्ति मन - मन - मस्तिष्क को बहुत देर तक झंकृत करने में स्क्षम !!!
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