For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चल पड़े राह जो गुनाह में थे । 
गुम गए वो सभी सियाह में थे । 


वो क्या थी अदा हमें दिखाई ,
जब हमारी रहे निगाह में थे । 


वो  क्या ये बतायें तुझे अब ,
जब रहे वो न उस सलाह में थे । 


हम कहें भी क्या तो वेसा क्या ,
जब रहे हम उसी पनाह में थे । 


क्यों  लगे  वो यहीं रुके  होंगे ,
जो  सदा के लिए प्रवाह में थे। 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2014 at 10:55pm

2122           2121       212 

हम नही चा / हे चलें गु/ नाह मे   =        हम नहीं चाहे चलें गुनाह मे 

2122              2121           212 

ज़िन्दगी फिर / क्यूँ रही सि / याह में  =  ज़िन्दगी फिर क्यूँ रही सियाह मे 

आदरणीय आपकी ग़ज़ल उपर लिखे बह्र मे आ सकती है ( बह्र मान्य है या नही मै नही जानता )  मतला सुधार दिया हूँ , आप बाक़ी शे र देख लीजियेगा !!

Comment by मोहन बेगोवाल on April 12, 2014 at 10:08pm
सर गिरिराज जी, आप ने मेरी रचना के बारे सार्थक राए दी , आप की मेहरबानी , बाकी दोस्तों का धन्यवाद, एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ , कृपा अपनी राए देना

हम न चाहे रहे थे गुनाह में ।
जिन्दगी फिर रही क्यूँसिया ह में ।
वो क्या थी अदा जो हमें दिखी,
जब रहे हम कभी उस निगाह में ।
अब तुझे हम कहें उसी की क्या,
जब न हम थे कभी उस सलाह में ।
हम करे बात कैसे विरोध की,
जब रहे थे सदा उस पनाह में ।
रुकी सी क्यूँ लगी है ये जिंदगी,
चल रहा था जहां एक प्रवा ह में ।
Comment by मोहन बेगोवाल on April 12, 2014 at 10:08pm
सर गिरिराज जी, आप ने मेरी रचना के बारे सार्थक राए दी , आप की मेहरबानी , बाकी दोस्तों का धन्यवाद, एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ , कृपा अपनी राए देना

हम न चाहे रहे थे गुनाह में ।
जिन्दगी फिर रही क्यूँसिया ह में ।
वो क्या थी अदा जो हमें दिखी,
जब रहे हम कभी उस निगाह में ।
अब तुझे हम कहें उसी की क्या,
जब न हम थे कभी उस सलाह में ।
हम करे बात कैसे विरोध की,
जब रहे थे सदा उस पनाह में ।
रुकी सी क्यूँ लगी है ये जिंदगी,
चल रहा था जहां एक प्रवा ह में ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 10, 2014 at 4:39pm

आदरणीय मोहन भाई , गज़ल के प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥ बह्र मे कुछ कमियाँ लग रहीं है , कुछ शे र बात साफ कह भी नही पाये हैं ॥ आप एक बार स्वयम् पढ़ के देखियेगा ॥

Comment by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 2:14pm

गजल के शिल्पों से ज्यादा परिचित नहीं हूँ , लेकिन छोटी बह्र की आपकी गजल उम्दा लगी । 

Comment by Akhand Gahmari on April 9, 2014 at 6:51pm

बेहतरीन रचना के लिए बहुत सी बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2014 at 1:16pm
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service