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चल पड़े राह जो गुनाह में थे । 
गुम गए वो सभी सियाह में थे । 


वो क्या थी अदा हमें दिखाई ,
जब हमारी रहे निगाह में थे । 


वो  क्या ये बतायें तुझे अब ,
जब रहे वो न उस सलाह में थे । 


हम कहें भी क्या तो वेसा क्या ,
जब रहे हम उसी पनाह में थे । 


क्यों  लगे  वो यहीं रुके  होंगे ,
जो  सदा के लिए प्रवाह में थे। 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2014 at 10:55pm

2122           2121       212 

हम नही चा / हे चलें गु/ नाह मे   =        हम नहीं चाहे चलें गुनाह मे 

2122              2121           212 

ज़िन्दगी फिर / क्यूँ रही सि / याह में  =  ज़िन्दगी फिर क्यूँ रही सियाह मे 

आदरणीय आपकी ग़ज़ल उपर लिखे बह्र मे आ सकती है ( बह्र मान्य है या नही मै नही जानता )  मतला सुधार दिया हूँ , आप बाक़ी शे र देख लीजियेगा !!

Comment by मोहन बेगोवाल on April 12, 2014 at 10:08pm
सर गिरिराज जी, आप ने मेरी रचना के बारे सार्थक राए दी , आप की मेहरबानी , बाकी दोस्तों का धन्यवाद, एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ , कृपा अपनी राए देना

हम न चाहे रहे थे गुनाह में ।
जिन्दगी फिर रही क्यूँसिया ह में ।
वो क्या थी अदा जो हमें दिखी,
जब रहे हम कभी उस निगाह में ।
अब तुझे हम कहें उसी की क्या,
जब न हम थे कभी उस सलाह में ।
हम करे बात कैसे विरोध की,
जब रहे थे सदा उस पनाह में ।
रुकी सी क्यूँ लगी है ये जिंदगी,
चल रहा था जहां एक प्रवा ह में ।
Comment by मोहन बेगोवाल on April 12, 2014 at 10:08pm
सर गिरिराज जी, आप ने मेरी रचना के बारे सार्थक राए दी , आप की मेहरबानी , बाकी दोस्तों का धन्यवाद, एक बार फिर प्रयास कर रहा हूँ , कृपा अपनी राए देना

हम न चाहे रहे थे गुनाह में ।
जिन्दगी फिर रही क्यूँसिया ह में ।
वो क्या थी अदा जो हमें दिखी,
जब रहे हम कभी उस निगाह में ।
अब तुझे हम कहें उसी की क्या,
जब न हम थे कभी उस सलाह में ।
हम करे बात कैसे विरोध की,
जब रहे थे सदा उस पनाह में ।
रुकी सी क्यूँ लगी है ये जिंदगी,
चल रहा था जहां एक प्रवा ह में ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 10, 2014 at 4:39pm

आदरणीय मोहन भाई , गज़ल के प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥ बह्र मे कुछ कमियाँ लग रहीं है , कुछ शे र बात साफ कह भी नही पाये हैं ॥ आप एक बार स्वयम् पढ़ के देखियेगा ॥

Comment by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 2:14pm

गजल के शिल्पों से ज्यादा परिचित नहीं हूँ , लेकिन छोटी बह्र की आपकी गजल उम्दा लगी । 

Comment by Akhand Gahmari on April 9, 2014 at 6:51pm

बेहतरीन रचना के लिए बहुत सी बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2014 at 1:16pm
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।

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