For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, अगरबत्ती, कर्पूर

मिठाई, पूजा, आरती, दक्षिणा

चुपचाप ये सबकुछ ग्रहण कर लेगा

अगर देना चाहोगे जानवरों या इंसानों की बलि

उसे भी ये चुपचाप स्वीकार कर लेगा

पर जब माँ बनते हुए बिगड़ जाएगी तुम्हारी बहू या बेटी की हालत

तब उसे छोड़कर किसी बड़े अस्पताल में किसी बड़े आदमी की

बहू या बेटी के सिरहाने डाक्टरों की फ़ौज बनकर खडा हो जाएगा

जब किसी झूठे केस में गिरफ़्तार कर लिया जाएगा तुम्हारा बेटा

तब उसे छोड़कर किसी अमीर बाप के बिगड़े बेटे को बचाने के लिए

वकीलों की फ़ौज बनकर खड़ा हो जाएगा

जब तुम स्वर्ग जाने की आशा में

किसी तरह अपनी जिन्दगी के अंतिम दिन काट रहे होगे

तब ये किसी अमीर बूढ़े के लिए

धरती पर स्वर्ग का इंतजाम कर रहा होगा

ये तुम्हारा ईश्वर नहीं है

तुम्हारा ईश्वर तो कब का मर चुका है

अब जो दुनिया चला रहा है

वो ईश्वर पूँजीवादी है

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:38am

बहुत बहुत शुक्रिया बृजेश जी।

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 10:31am

वाह! बहुत सुन्दर! वर्तमान देश काल की विसंगतियों को बहुत अच्छे से उधेड़ा है आपने इस कविता के माध्यम से. 

//अब जो दुनिया चला रहा है

वो ईश्वर पूँजीवादी है//.........ये पंक्तियाँ सीधे चोट करती हैं.

इस रचना के लिए आपको साधुवाद और हार्दिक बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:04am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ सौरभ जी, स्नेह बना रहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 1:41am

धनपशुता की वैचारिक वीभत्सता को जिस तीखेपन से दुत्कारा गया है और जिस समाज पर लानतें भेजी गई हैं वह इस कविता का हेतु है. वह समाज अवश्य ही बहुसंख्यक की मान्यताओं और ऐसों के जीवन की कठिनाइयों का पक्षधर नहीं है, लेकिन किस तरह से हर तरह के समाज को प्रभावित करता है, यह अबूझ नहीं है.

बधाई स्वीकार करें.. आदरणीय

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:42am

बहुत बहुत शुक्रिया Prachi जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 19, 2014 at 6:11pm

समाज के दो अलग वर्गों में भेद दिखाती परिस्थितियाँ..एक के लिए सुकून सुगम और दुसरे केलिए दुर्गम... ऐसे में ईश्वर की आमजन में व्याप्त अवधारणा को पूरे आक्रोश के साथ आपने शब्दबद्ध किया है.. 

शुभकामनाएं 

Comment by विजय मिश्र on April 12, 2014 at 5:17pm
एक बिन्दू पर दो लोगों के दो भिन्न दृष्टिकोण होना सहज सी बात है ,आपने मेरी बात को गौर किया ,सोचा और उसपर अपनी बात रखी ,यही क्या कम है! धन्यवाद धर्मेंद्रजी|
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2014 at 4:31pm

अपने विचारों से अवगत करवाने के लिए धन्यवाद विजय मिश्र जी। कहते हैं कि ईश्वर दयानिधान, गरीबनवाज़, दीन दुखियों का है लेकिन आजकल सबकुछ इसके बिल्कुल विपरीत हो रहा है। ये कविता ईश्वर की इस अवधारणा पर व्यंग्य है। धनहीन समाज पहले से ही कुंठित है तथा दिन ब दिन और ज्यादा कुंठित होता जा रहा है। ये कविता केवल उस बढ़ती हुई कुंठा को सामने ला रही है आखिर साहित्य समाज का आईना है।

मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ।

Comment by विजय मिश्र on April 11, 2014 at 5:38pm
धर्मेंद्रजी , कविता अच्छी बनी है ,आजकी आधुनिकता में धन के प्राबल्य को सटीक तरिकेसे रखती भी है किन्तु आशय परम्परा के विपरीत ले जाता है और बहुत विशाल समाज को जो धनहीन है ,उसे कुंठित करता है तथा स्रोत को अनदेखा कर जीत-तीत प्रकार से उपार्जन की प्रेरणा देने से भी नहीं चूकता |कवि का दायित्व कहीं क्षीण है |क्षमा सहित |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2014 at 3:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया जितेन्द्र 'गीत' जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service