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जिंदगी मैं अभी भी कुछ इम्तेहान बाकी हैं
गुजरी हैं आंधियां अभी तूफ़ान बाकी हैं
मैं दूर तेरी महफ़िल से जाऊं भी तो कैसे
महफ़िल मैं तेरी मेरे भी कदरदान बाकी हैं
बे-ईमानों की दुनिया मैं घूमता हूँ शान से
जब तक मेरे सीने मैं मेरा ईमान बाकी है
लौटकर के मौत भी घर से मेरे खाली गई
मेरी माँ का कोई ऐसा वरदान बाकी है
सो रहा है मुल्क मेरा जो सुकूं और चैन से
सरहद पे जान लुटाता हुआ जवान बाकी है
तुम जलाके बस्तियां कर दो हमें बे-घर भले
जमीं बिछौना ओढने को तो आसमान बाकी है
तुम ढूंढते फिरते हो जिसे मंदिरों मैं सारी उमर
कैसे मिलेगा दिल मैं जब तेरे शैतान बाकी है
तुम फिजूल तीर तीखे अपनों पे चलाते रहे
तरकश है खाली बस हाथ मैं कमान बाकी है
बेटा कमाने दौलतें देश से विदेश चला गया
तीरथ लेके जाये कहाँ वो संतान बाकी है
इंसानियत दुनिया मैं जिंदा रहेगी तब तलक
जब तक के आखिरी नेक दिल इंसान बाकी है
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय गीतिका जी, आपका हार्दिक आभार आपकी शुभकामनाओं और उत्साहवर्धन के लिए !
// प्रथम शेअर में आपने बहुवचन का प्रयोग किया / कुछ तूफान बाकी हैं/, इसके बाद आपने एक वचन प्रयोग किया। मार्गदर्शन चाहती हूँ। // इस ओर धयानाकर्ष्ण के लिए हार्दिक आभार दरअसल गजल लिखना मेरा शौक है और अपने अल्फाजों को गजल के विधान के अनुरूप लिखने के लिए प्रयासरत हूँ इसलिए इस शेर मैं जो वहु वचन का प्रयोग हुआ है, और आगे चलकर ये एक वचन मैं परिवर्तित हो गया है तो ये उसी सीखने की प्रक्रिया का अंग है और त्रुटिवश है आपने ध्यानाकर्षित कराया उसके लिए आपका दिली धन्यवाद आगे इस बिंदु का ख़याल रखने का प्रयास करूगां !
चूँकि मैं पहले ही बयाँ कर चुका हूँ कि मैं इस विद्या का छात्र ही हूँ अभी इसलिए आपका मार्गदर्शन चाहूँगा इस बात पर // " बढ़िया प्रयास हुआ है। मेरे विचार में फिलर शब्दों के स्थान पर प्रभावी शब्द उपयोग हों तो और भी बेहतर। " ये फिलर शब्द क्या हैं और ये प्रभावशाली शब्दों से कैसे भिन्न हैं ?
आपका हार्दिक धन्यवाद बृजेश जी, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए !
सुन्दर प्रयास! आपको बधाई!
टाइपिंग की गलती पर ध्यान दें.
आदरणीय चंद्र शेखर पाण्डेय जी, आपकी शुभकामनाओं और सुझावों का हार्दिक आभार !
प्रयास जारी रखें, गुणीजनों की बातों पर ध्यान दें, अच्छी गजल के लिए बधाई व शुभेच्छाएं।
आदरणीय गिरिराज जी, आपका हार्दिक आभार !
आदरणीय सचिन भाई , ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है , आपको बधाइयाँ ! बह्र मे कमियाँ है , मुझे लगता है सुरुवाती दौर के लिये ये बह्र भी कठिन है ।
आदरणीय शकील जमशेदपुरी जी, गजल के भाव को आपने मान दिया उसके लिए तथा आपके सुझाव के लिए हार्दिक आभार आपका !
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