For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं

1222 1222 1222 1222

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इन्हें या खंजरों का वार ही समझूं

कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझको लगती है
कहूं बातों को बातें या इन्हें इकरार ही समझूं

वो डर के भेडियो से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि फिर एतवार ही समझूं

झरे आँखों से आंसू आज तो बरसात की मानिंद
कहूं मोती इन्हें या सिर्फ मैं जलधार ही समझूं

तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है
गुनहगारों सा मानूं तुमको या दिलदार ही समझूं

नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
युँ तुम शरमा रही हो या इसे इनकार ही समझूं

पड़े ओंठो पे ताले पलके उठती और गिरती हैं
इसे मैं जीत ही मानू या इसको हार ही समझूं

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 524

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 20, 2014 at 12:28pm

लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 10:43am

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय  ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on April 19, 2014 at 8:13pm

सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:57pm

आदरणीय आशुतोष सर बहुत सुन्दर ग़ज़ल सभी अशआर अच्छे लगे, इसकी तक्तीअ पुनः करे लें. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

गुनहगारों सा मानूं तुमको या दिलदार ही समझूं ... बह्र में नहीं है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 7:17pm

आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , मेरी दिली दाद स्वीकार करें !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:13am

आदरणीय आशुतोष भाई , इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 10:55am

नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
युँ तुम शरमा रही हो या इसे इनकार ही समझूं................वाह! क्या बात कही, पुरानी यादों को ताजा कर दिया आपने

पड़े ओंठो पे ताले पलके उठती और गिरती हैं
इसे मैं जीत ही मानू या इसको हार ही समझूं..............बहुत बहुत सुंदर

आदरणीय डा.आशुतोष जी, इस लाजवाब गजल पर आपको तहे दिल से बधाई

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 12:55pm

वाह्ह्ह्ह्ह क्या बात है, सर बहुत उम्दाह्ह!! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service