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हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी
हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी
फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम
कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी
जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं
ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी
जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा
वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी
हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है
बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रिय के एहसासों को समेटती नजाकत भरी ग़ज़ल
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
बहुत ही खुबसूरत एहसास हैं जनाब ....लाजवाब
फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम
कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी...क्या बात ..क्या बात
अहा क्या कहने बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय .......... हार्दिक बधाई आपको
बहुत सुन्दर ग़ज़ल .. बधाई ..
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है! सभी अशआर उम्दा हैं! आपको बहुत बधाई! इन दो अशआर पर विशेष बधाई-
//मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी//
//हसी के भाल की बिंदी फलक पे देखी है
बड़ी हसीन सी यारों सहर रही होगी//
आदरणीय आशुतोष सर खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
खूबसूरत गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई...सादर.
वाह ! भाई आशुतोष जी , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है , पूरी गज़ल बहुत उम्दा कही ! पूरी गज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें ॥
आदरणीय आशुतोष जी
ज़िंदगी से लबरेज इस ग़ज़ल पर मेरी तरफ से हज़ारों दाद हाजिर है
फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम
कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी
जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं
ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी
मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो
खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी
जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा
वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही होगी
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