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बड़ी उम्मीद से मालिक ने ये दुनिया बनायी है
दरिंदों ने मगर ये आग नफरत की लगाई है
कमर दुहरी हुई थी उसकी इक झोपड़ के ही खातिर
मगर हैवान ने वो भी नहीं छोडी जलाई है
नपुंसक हो गए हैं आज ताजो तख़्त दुनिया के
यही कहती है सबसे चीख बेबा की रुलाई है
कुलांचे भर रहा था जो लहू में है पड़ा भीगा
हिरन शावक पे किसने आज ये गोली चलायी है
अगर अब भी रही जारी यूं कन्या भ्रूण हत्याएं
न फिर तुम पूंछना क्यूँ भाई की सूनी कलाई है
बहा जिनका पसीना उनको रोटी के पड़े लाले
दलालों ने मगर इस देश में खाई मलाई है
मौलिक व अप्रकाशित
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अगर अब भी रही जारी यूं कन्या भ्रूण हत्याएं
न फिर तुम पूंछना क्यूँ भाई की सूनी कलाई है..........बहुत खूब
सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..हार्दिक बधाई आ० अशुतोष जी
आ. डॉ आशुतोष जी इस मार्मिक रचना के लिए दिली दाद कबूल करें आदरणीय
अगर अब भी रही जारी यूं कन्या भ्रूण हत्याएं
न फिर तुम पूंछना क्यूँ भाई की सूनी कलाई है
अगर अब भी रही जारी यूं कन्या भ्रूण हत्याएं
न फिर तुम पूंछना क्यूँ भाई की सूनी कलाई है..........बहुत मार्मिक
बहुत बहुत बधाई आदरणीय डा. आशुतोष जी
आदरणीया सरिता जी ..मेरी रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद .सादर
अगर अब भी रही जारी यूं कन्या भ्रूण हत्याएं
न फिर तुम पूंछना क्यूँ भाई की सूनी कलाई है
बहा जिनका पसीना उनको रोटी के पड़े लाले
दलालों ने मगर इस देश में खाई मलाई है
वाह आदरणीय खुब्सुअरत गजल
आदरणीया कुंतीजी ..आपसे सतत ही हौसला मिलता रहा है ..बस यूं ही आप का स्नेह मिलता रहे ..सादर
आदरणीय मुकेश जी ..मेरी रचना पर आपकी प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
बहुत ही मार्मिक रचना है. शुभकामनाएँ.
आदरणीय आशुतोष जी
बहुत बढ़िया.. बहुत मुबारकबाद
बहा जिनका पसीना उनको रोटी के पड़े लाले
दलालों ने मगर इस देश में खाई मलाई है
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