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ग़ज़ल '' आओ सिक्का उछाल लेते हैं '' ( गिरिराज भंडारी )

2122     1212     22 /112

 

आज  फिर से  बवाल  लेते हैं

प्रश्न   कोई   उछाल  लेते  हैं

 

प्यास का हल कोई हमीं करलें

वो  समझने में  साल लेते  हैं

 

उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले

वो जो सब का मलाल लेते हैं

 

तेग वो ही चलायें, खुश रह लें

आदतन, हम जो ढाल लेते हैं

 

आज कश्मीर पर हो हल कोई

आओ  सिक्का उछाल लेते हैं  

 

भूख, उनके खड़ी रही दर पर

रिज़्क जो- जो हलाल लेते हैं

 

फिर उजाला मिलेगा सूरज से

बंट   रहा है ख़याल , लेते  हैं

***************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

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Comment

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Comment by vijay nikore on April 20, 2014 at 8:43am

गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by vandana on April 20, 2014 at 6:14am

आज कश्मीर पर हो हल कोई

आओ  सिक्का उछाल लेते हैं  .... बेहतरीन शेर आदरणीय 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:11am

बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी

तेग वो ही चलायें, खुश रह लें

आदतन, हम जो ढाल लेते हैं..............कमाल का शेर, दिली बधाई स्वीकारें

 


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 9:21pm

आदरणीय नीरज भाई , आपका शुक्रिया !!

Comment by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 9:01pm

वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:17pm

आदरणीया सविता जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:15pm

आदरणीय कृष्णा भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:14pm

आदरनीय कुंती जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:12pm

आदरणीया गीतिका जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!

Comment by बृजेश नीरज on April 19, 2014 at 8:11pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

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