For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नायक (अरुण श्री)

अपनी कविताओं में एक नायक रचा मैंने !
समूह गीत की मुख्य पंक्ति सा उबाऊ था उसका बचपन ,
जो बार-बार गाई गई हो असमान,असंतुलित स्वरों में एक साथ !

तब मैंने बिना काँटों वाले फूल रोपे उसके ह्रदय में ,
और वो खुद सीख गया कि गंध को सींचते कैसे हैं !
उसकी आँखों को स्वप्न मिले , पैरों को स्वतंत्रता मिली !

लेकिन उसने यात्रा समझा अपने पलायन को !
उसे भ्रम था -
कि उसकी अलौकिक प्यास किसी आकाशीय स्त्रोत को प्राप्त हुई है !
हालाँकि उसे ज्ञात था पर स्वीकार न हुआ -
कि पर्वतों के व्यभिचार का परिणाम होती हैं कुछ नदियाँ !

वो रहस्यमय था मेरे प्रेमिल ह्रदय से भी -
और अंततः मेरी निराश पीड़ा से भी कठोर हुआ !
मृत समझे जाने की हद तक सहनशील बना -
-अतीत के सामुद्रिक आलिंगनों के प्रति , चुम्बनों के प्रति !

आँखों में छाया देह का धुंधलका बह गया आंसुओं में ,
तब दृश्य रणभूमि का था !
पराजित बेटों के शव जलाने गए बूढ़े नहीं लौटे शमशान से !
दूध से तनी छातियों पर कवच पहने युवतियाँ -
दुधमुहें बच्चों को पीठ पर बाँध जलते चूल्हे में पानी डाल गईं !

जब वो प्रेम में था , उसकी सभ्यता हार गई अपना युद्ध !

अब भींच ली गईं हैं आंसू बहाती उँगलियाँ !
उसके माथे पर उभरी लकीरें क्रोधित नहीं है, आसक्त भी नहीं -
किसी जवान स्त्री की गुदाज जांघों के प्रति !
क्योकि ऐसे में आक्रोश पनपता है , उत्तेजना नहीं !

अपनी रातरानी की नुची पंखुडियों का दर्द बटोर -
वो जीवित है जला दिए गए बाग में भी !
दिनों को जोतता हुआ , रातों को सींचता हुआ !
ताकि सूखकर काले हो चुके खून सने खेत गवाही दें -
कि मद्धम नहीं पड़ सकती बिखरे हुए रक्त की चमक !
सुनहरे दाने उगेंगे एक दिन !
और अंतिम दृश्य उसके हिस्से का -
कटान पर किया जाने वाला परियों का नृत्य होगा !
क्योकि -
उसे स्वीकार नहीं एक अपूर्ण भूमिका सम्पूर्णता के नाटक में !

नेपथ्य का नेतृत्व नकार दिया गया है !
अब मैं उसका भाग्य नहीं , उसके कर्म लिखता हूँ !

.

.

.

अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1017

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on May 6, 2014 at 7:41pm

Dr.Prachi Singh कुछ श्रेय तो आपकी विश्लेषण क्षमता और संवेदनशीलता को भी जाता है ! बहुत धन्यवाद इस मुखर अनुमोदन के लिए !

Comment by Arun Sri on May 6, 2014 at 7:39pm

Neeraj Kumar 'Neer'  जी , बहुत धन्यवाद आपको कि यहाँ तक पहुँचे , समय दिया !

Comment by Arun Sri on May 6, 2014 at 7:39pm

Vindu Babu जी , मेरे प्रयास को सराहने के लिए बहुत धन्यवाद आपको !  

Comment by Arun Sri on May 6, 2014 at 7:38pm

इस अनुमोदन हेतु धन्यवाद CHANDRA SHEKHAR PANDEY  भाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2014 at 10:19pm

ज़िंदगी की कठोर वास्तविकताओं से रूबरू हो जैसे शिल्पकार रच दे कोइ कलाकृति वैसे ही आपकी रचनाओं का नायक जिसकी मन चेतना सोच शब्द कर्म सब यथार्थ के धरातल पर जैसे अग्नि से गुजर कर पके हुए ठोस, जहां सिर्फ सच्चाई ही चीत्कार करती है...

 गहन चिंतन मनन से उपजी एक अत्यंत परिपक्व रचना जिसने सत्य से रूबरू करतै हुए अपनी सान्द्रता में बहुत देर तक  डुबाए रखा .... 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर आ० अरुण जी 

Comment by Neeraj Neer on May 4, 2014 at 10:49am

उसे स्वीकार नहीं एक अपूर्ण भूमिका सम्पूर्णता के नाटक में... बहुत ही सुन्दर एवं गहन भाव .. इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण जी .. 

Comment by Vindu Babu on May 2, 2014 at 7:33pm

आदरणीय अरुण जी कविता आपकी गहन सोच और परिश्रम को प्रदर्शित कर रही है।

आपको हार्दिक बधाई इस गम्भीर अभिव्यक्ति के लिए।

सादर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on May 2, 2014 at 10:42am

आपकी रचनाएँ सिहरन पैदा करती हैं। निशब्द हूँ। जय हो।

Comment by Arun Sri on May 2, 2014 at 10:41am

rajesh kumari  मैम , आपने हमेशा हौसला बढ़ाया है ! आपने समय दिया इसके लिए धन्यवाद आपको ! सादर !

Comment by Arun Sri on May 2, 2014 at 10:38am

अच्छा  लगा कि एक समर्थ रचनाकार को मेरी कविता अच्छी लगी ! धन्यवाद धर्मेन्द्र कुमार सिंह  जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service