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संदेसा भेज दे ,कान्हा को कोई ----(कुडंली छंद)

कुडंली छंद 

छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु गुरु (यगण, मगण), यति ११-१०।

अँखियों से झर रहे,बूँद-बूँद मोती,

राधा पग-पग फिरे,विरह बीज बोती|

सोच रही काश मैं ,कान्हा  सँग होती,

चूम-चूम बाँसुरी,अँसुवन से धोती|

 

मथुरा पँहुचे सखी ,भूले कन्हाई,  

वृन्दावन नम हुआ ,पसरी तन्हाई|

मुरझाई देखता ,बगिया का माली,

तक-तक राह जमुना ,भई बहुत काली|

 

 खग,मृग, अम्बर, धरा,हँसना सब भूलें,  

 जूही ,टेसू, कमल ,महुआ ना फूलें|

 पूछ रही डालियाँ ,कौन संग झूलें,   

 निष्ठुर, निष्पंद हिय, उठती हैं हूलें|   

 

 

कोयलिया डार पर ,कुहुक-कुहुक रोई,

बीतें जग-जग दिवस ,रतियाँ न सोई|

बिरही  पगडंडियाँ , शूल- शूल बोई, 

 संदेसा भेज दे ,कान्हा  को  कोई|    

----------------------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 12:32pm

आदरणीया राजेशकुमारी,

कान्हा के मथुरा गमन के बाद गोकुल  पर प्रभाव  और  पशु पक्षी ग्वाल बाल , गोपिकाओं की व्यथा का सुंदर वर्णन , हार्दिक बधाई , पहली बार कुडंली छंद पढ़ने का अवसर मिला , भाव और शब्दों का संयोजन भी बेहतर 

सोच रही काश में ,.......... यहाँ टंकण त्रुटि है 

मथुरा पँहुचे सखी ,भूले कन्हाई,     .......मथुरा पँहुचकर  सखि ,भूले कन्हाई,  

अँखियों से झर रहे,बूँद-बूँद मोती,

राधा पग-पग फिरे,विरह बीज बोती|

सोच रही काश में ,कान्हा  सँग होती,

चूम-चूम बाँसुरी,अँसुवन से धोती|

बिरही  पगडंडियाँ , शूल- शूल बोई, 

 संदेसा भेज दे ,कान्हा  को  कोई|    ...........  बहुत ही सुंदर , 

सादर 

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