For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डगमगा जाते यहाँ ईमान कितने (ग़ज़ल 'राज')

२१२२  २१२२  २१२२

साधुओं के भेष में शैतान कितने

लूटते विश्वास के मैदान कितने   

 

फितरतें इनकी विषैली अजगरों सी   

डस चुके हैं जीस्त में इंसान कितने  

 

इस सियासी दौर में गुलज़ार हैं सब

रास्ते जो  थे कभी वीरान कितने

 

हाथ में इतनी मिठाई देख कर वो  

 भुखमरी से जूझते हैरान कितने

 

छीनना ही था हमेशा काम जिनका 

आज देते जा रहे हैं दान कितने

 

हड्डियाँ फेंकी उन्होंने सामने जो 

डगमगा जाते यहाँ ईमान कितने                                     

                                      

धर्म की दीवार जिनको बाँटती हैं

आज आँगन वो  यहाँ सुनसान कितने

क्या भरोसा हम करें उस मौलवी का

खुद गली में बिक रहे भगवान् कितने

 

आम जनता आज फिर ये देखती है

झूठे वादे फिर चढ़े परवान कितने  

 

‘राज’ बगुले चल रहे हंसो की माफ़िक

बन रहे हैं शक्ल से अनजान कितने

__________

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2014 at 5:03pm

आ० सत्यनारायण सिंह जी, ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रफुल्लित हुआ  ,तहे दिल से आभारी हूँ. 

Comment by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 11:11am

समसामयिक विषय पर आधारित सियासी फितरतों पर कटाक्ष करती इस शानदार ग़ज़ल पर सादर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2014 at 8:30am

आपको ग़ज़ल पसंद आई ..बहुत- बहुत शुक्रिया प्रिय प्राची जी. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 1, 2014 at 7:54am

सियासती ज़मीन पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० राजेश जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2014 at 5:52pm

आ० डॉ आशुतोष जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ आपकी इस बधाई के लिए. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 1:58pm

आदरणीया राज जी ..वर्तमान चुनावों के दौर में तमाम बातों की तरफ इशारा करती शानदार ग़ज़ल ..

धर्म की दीवार जिनको बाँटती हैं

आज आँगन वो  यहाँ सुनसान कितने

हड्डियाँ फेंकी उन्होंने सामने जो 

डगमगा जाते यहाँ ईमान कितने     ..बेहतरीन शेर ..आपकी इस रचना पे मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 25, 2014 at 9:25am

प्रिय महिमा श्री जी, आपको बहुत दिनों बाद ओबीओ पर देख कर अपार प्रसन्नता हो रही है.ग़ज़ल पर प्रोत्साहित करती हुई प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से आभार.  

Comment by MAHIMA SHREE on April 24, 2014 at 9:51pm

वाह वाह ढेरों दाद क़ुबूल करें आ. राजेश दी ..कमाल की ग़ज़ल कही है आपने .. शानदार !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 24, 2014 at 11:42am

आ० धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, ग़ज़ल पर आपकी दाद पाकर बहुत  ख़ुशी हुई तहे दिल से आभारी हूँ. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:33am

अच्छे अश’आर हुए हैं राजेश कुमारी जी। दाद कुबूल कीजिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service