महात्माओं और पीरों के देश में
गांधी कवीर और फकीरों के देश में
पूजा प्यार और पहरावे पर भी
इन्सान होने की परिभाषा
न जाने क्यों बदल जाती है
इक छोटी चिंगारी भी
शोला बन जाती है
मुठियाँ भिंच जाती हैं
तलवारें खिंच जाती हैं
घर जलाए जाते हैं
कत्ल किये जाते हैं
कुछ जाने पहचाने
चेहरों द्वारा
कुछ अपने बेगाने
मोहरों द्वारा
और साथ ही
कत्ल हो जाता है
धू-धू जल जाता है
दशकों पुराना रिश्ता प्यारा
अटूट बिश्वास और भाई चारा
धर्मांद सोच पर जलती नहीं
कभी मिटती नहीं
हो जाती है मगर और भी कठोर
पानी चढ़े लोहे की तरह I
***-***-***
"मौलिक व अप्रकाशित"
डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'
Comment
नीरज भाई,हौस्लाफसाई के लिए बहुत बहुत धन्यावाद I
इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!
डॉ मिश्रा जी,होसला फसाई के लिए दिल की गहराइयों से आभार I
आदरणीय कँवर जी ..सुंदर बिचारों को संजोये शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
श्रधेय भंडारी जी ,कविता सराहने के लिए कोटि कोटि धन्याबाद I
बहिन मीना ,कविता अच्छी लगी ,बहुत बहुत धन्याबाद I
आदरणीय कंवर भाई , अच्छा विचार , अच्छी सोच , आपको बधाइयाँ ॥
बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आदरणीय
आदरणीय डॉ कँवर सर रचना अच्छी हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
बहिन मुकर्जी आपको कविता पसंद आई,कोटि कोटि धन्याबादI
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