ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
कोई कातिल सुना जो शहर में है बेजुबाँ आया
किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया
धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई
हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया
घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ
करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया
अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को
अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया
अगर महफूज रखना है बला…
ContinueAdded by कंवर करतार on April 3, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
शरद ऋतु गीत
झम झम रिमझिम पावस बीता
अब गीले पथ सब सूख गए
गगन छोर सब सूने सूने
परदेश मेघ जा बिसर गए
हरियावल पर चुपके चुपके
पीताभा देखो पसर गई
हौले हौले ठसक दिखा कर
चंचल चलती पुरवाई है -
लो! शरद ऋतु उतर आई है I
दशहरा, नवरात्र, दीवाली
छठ, दे दे खुशियाँ बीत गए
पक कट गए मकई बाजरा
पीले पीले भी हुए धान
रातें भी बढ़ कर हुईं लम्बी
घटते घटते गए दिनमान
विरहन का तन मन डोल रहा
खुद खुद से ही कुछ बोल…
Added by कंवर करतार on January 8, 2018 at 10:00pm — 11 Comments
212 212 212 212
सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे I
नूर परियों के चेहरे उतर जाएँगे II
जाँ निसार अपनी है तो उन्हीं पे सदा ,
वो कहेंगे जिधर हम उधर जाएँगे I
ऐ ! हवा मत करो ऐसी अठखेलियाँ ,
उनके चेहरे पे गेसू बिखर जाएँगे I
पासवां कितने बेदार हों हर तरफ ,
उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे I
है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा ,
उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे I
बेरुखी उनकी…
ContinueAdded by कंवर करतार on August 17, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I
सदा दी होती जो तुमने शरारत ओर हो जाती II
पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,
वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I
कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I
बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,
पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I
मुझे तो होश में लाकर भी…
ContinueAdded by कंवर करतार on August 15, 2017 at 10:21pm — 12 Comments
“बेटे सुजित, कहाँ हो” शर्मा जी अपनी चाबी से मुख्य दरबाजा खोलते ही अंदर अँधेरा देख बोले Iआबाज लगाते लगाते ही घर की बत्तियाँ जलाने लगे Iज्यों ही बेटे वाले कमरे की बत्ती का बटन दबाया, कक्षा दो में पढ़ने बाले बेटे को मोबाइल पर अपने नन्हें दोस्तों से व्हाट्स एप पर चैटिंग करते देख डांटते हुए बोले, “हर समय बस चैटिंग-चैटिंग, कुच्छ होम वर्क कर लेते I उठो, जाओ अपना होम वर्क करो I”
“आइ एम सॉरी पापा --” रुआंसा हुआ सुजित बोला, “ पर पापा --आप सुवह मेरे स्कूल जाने से पहले आफिस निकल जाते हो और…
ContinueAdded by कंवर करतार on October 7, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
ग़ज़ल
(वहर : 2212 2212 2212 2212 )
वो दुश्मनी की सब हदों को पार करता ही रहा I
मैं माफ़ उसको जान कर हर बार करता ही रहा II
जो आह भर भर हर समय थे देखते राहें सदा ,
उनके दिलों से वो सदा व्यापार करता ही रहा I
दिल से न शाया था हटा, कुछ तो नजर ढूंढे तभी ,
पहचानता है क्या उसे, इनकार करता ही रहा I
राजा दिलों का वो बनें, है मर नहीं…
ContinueAdded by कंवर करतार on October 2, 2015 at 2:23pm — 10 Comments
ग़ज़ल
(वहर 22 22 22 22 2 )
वो फिर घुस आया ,मन के समन्दर I
मैं छोड़ आया जिसे मन्दिर अंदर II
सब कसमें लेते हैं बदले की ,
अब रहे कहां बापू के बन्दर I
आजिज कोई हो नेमत देता ,
है कोई ऐसा मस्त कलन्दर I
अबरोधों से खुद है तुम्हें लड़ना ,
सम्भालो तुम अपने सभी सन्दरI
धन बल ज्ञान न बंधे जाति में ,
कौन यहाँ मुफलिस कौन सिकन्दर I
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Added by कंवर करतार on September 18, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
किसी के अब्दुल थे
किसी के तुम कलाम
दृढ़ थे संकल्प तेरे
वहुआयामी कलाम I
माँ भारती के लाल
तुझ को मेरा सलाम I
होते हुए भी अर्श पर
भूले न जो थे फ़र्श पर
व्याधि वाधा सांझा कर
दी सदा उन्हें संघर्ष पर
लगाओ पंख अग्नि को
न होंगे कभी तुम नाकाम I
जियो मरो देश के लिए
न होंगे कभी तुम गुलाम I
माँ भारती के लाल
तुझ को मेरा सलाम I
विपत्तियों से न डरो
बीच धारा से…
ContinueAdded by कंवर करतार on July 30, 2015 at 9:30pm — 2 Comments
उठ सम्भल ओ नौजवान
यही है तेरे नाम पैगाम
लिंग जाती धर्म भेद
आग में जलाए चल
एक थे हम एक हैं
अलख तू लगाए चल
दम तेरे पास है
बस तुम्हीं पे आस है
बाधा कोई रोक ले
चूलें तू उसकी ठोक दे
हर दीबार को गिराए चल
हक पाने के लिए
जन जन को जगाए चल
बस तुम्हीं में श्वास है
बस तुम्हीं पे आस है
पुण्य आज डूब रहा
पाप फल फूल रहा
सत्ता भ्रष्ट हो रही
जनता त्रस्त रो…
ContinueAdded by कंवर करतार on January 4, 2015 at 10:00pm — 10 Comments
"मेरी रचना"
देखते-दिखाते
कभी सुनते-सुनाते
चलते –चलाते
कभी पढ़ते-पढ़ाते
कुच्छ करते-कराते
कभी बतियाते
न जाने कब यह मन
पहुँच जाता कहां है
किसी देवता के
खेल चढ़े गुर की तरह
संबेदनाओं की टंकार से
हो कर सम्पदित
द्रबित मन
यादों के ढेर पर से
काल की धूली हटाता
चपल भावों की लहरें
शब्दों के पतवार
वाक्यों की…
ContinueAdded by कंवर करतार on January 4, 2015 at 1:00pm — 7 Comments
(2122 2122 2122 2122)
दोस्ती कैसे निभाएं कोई पैमाना कहाँ है
हीर रान्झू का नया सा आज अफ़साना कहाँ है
प्यार से ही जो बदल दे हर अदावत की फ़जा को
संत मुर्शिद सूफ़ी मौल़ा ऐसा मस्ताना कहाँ है
ख़ुद गरज नेता वतन का तो करेंगे वो भला क्या
मार हक़ फिर देखते हैं वो कि नजराना कहाँ है
अंजुमन में रिन्दों की भी बैठ कर देखें जरा हम
हाल सब का पूछते वो कोई अनजाना कहाँ है
हर ख़ुशी कुर्बान…
ContinueAdded by कंवर करतार on December 30, 2014 at 10:00pm — 19 Comments
महात्माओं और पीरों के देश में
गांधी कवीर और फकीरों के देश में
पूजा प्यार और पहरावे पर भी
इन्सान होने की परिभाषा
न जाने क्यों बदल जाती है
इक छोटी चिंगारी भी
शोला बन जाती है
मुठियाँ भिंच जाती हैं
तलवारें खिंच जाती हैं
घर जलाए जाते हैं
कत्ल किये जाते हैं
कुछ जाने पहचाने
चेहरों द्वारा
कुछ अपने बेगाने
मोहरों द्वारा
और साथ ही
कत्ल हो जाता है
धू-धू जल जाता…
ContinueAdded by कंवर करतार on May 10, 2014 at 1:58pm — 13 Comments
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