उठ सम्भल ओ नौजवान
यही है तेरे नाम पैगाम
लिंग जाती धर्म भेद
आग में जलाए चल
एक थे हम एक हैं
अलख तू लगाए चल
दम तेरे पास है
बस तुम्हीं पे आस है
बाधा कोई रोक ले
चूलें तू उसकी ठोक दे
हर दीबार को गिराए चल
हक पाने के लिए
जन जन को जगाए चल
बस तुम्हीं में श्वास है
बस तुम्हीं पे आस है
पुण्य आज डूब रहा
पाप फल फूल रहा
सत्ता भ्रष्ट हो रही
जनता त्रस्त रो रही
सोये हैं जो कब्र में
हर लाश तू हिलाए चल
तुम्हीं में बिश्वास है
बस तुम्हीं पे आस है
बंधें कभी न अरमान
तेरे सामने है आसमान
दिशा तूफान की मोड़ दे
हर मंजिल पीछे छोड़ दे
देश कौम के लिए
नया कुछ कमाए चल
कुर्बान हो तो देश पर
साक्षी इतिहास है
बस तुम्हीं पे आस है
समाज के शोध में
कुनीति के निरोध में
निरंकुशता, भ्रष्टाचार और
कुशासन के बिरोध में
सर कभी न झुके
आबाज कभी न रुके
चिंगारी इक लगाए चल
ज्ञानालोक तू फैलाए चल
मशाल तेरे हाथ है
कुछ तुम्हीं में खास है
बस तुम्हीं पे आस है
अपने हुनर और ज्ञान का
धरा से आकाश तक
माँ भारती की शान का
झंडा फहराए चल
पूर्व से ही विश्व में
फैलता प्रकाश है
बस तुम्हीं पे आस है
बस तुम्हीं पे आस है
(मौलिक एवम् अप्रकाशित )
कंवर करतार ‘खन्देह्ड़बी’
Comment
भाई सोमेश ,निस्छ्न्द आधुनिक कविता इसे समझता हूँ Iठीक फरमाया, वास्तब में अतुकान्त नहीं,टिपणी के लिए धन्यबाद I
भाई वामनकर ,कविता सराहना के लिए आभार I
त्रिपाठी जी ,उत्साह बर्धन के लिए धन्यबाद I
भाई जी ये कविता ,अतुकांत तो नहीं है ,कविता में युवाओं को जागृत करने के लिए जो आह्वान आप ने किया है ,आशा है उस भाव को ये कविता पोषित कर सकें
सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें
सुन्दर पंक्तियाँ -
सर कभी न झुके
आबाज कभी न रुके
चिंगारी इक लगाए चल
ज्ञानालोक तू फैलाए चल
मशाल तेरे हाथ है
कुछ तुम्हीं में खास है
बस तुम्हीं पे आस है
एक सामान लय वाली ,अदभुत कविता |
आपको बधाई आदरणीय |
डॉ.श्रीवास्तव जी,आप जैसे विद्वान को कविता अच्छि लगी है ,सौभाग्यI धन्यबाद I
भाई दुबे जी,कविता की सराहना के लिए आभार I
सर कभी न झुके
आबाज कभी न रुके
चिंगारी इक लगाए चल
ज्ञानालोक तू फैलाए चल
मशाल तेरे हाथ है
कुछ तुम्हीं में खास है
बस तुम्हीं पे आस है-------------------------- sundar bhav I
खूबसूरत/जोशवर्धक कविता , हार्दिक बधाई, आदरणीय डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी' जी !
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