1222 1222 1222 1222
अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I
सदा दी होती जो तुमने शरारत ओर हो जाती II
पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,
वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I
कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I
बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,
पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I
मुझे तो होश में लाकर भी क्यों ना मुस्कराए तुम?
जहां सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती I
दिया होता जो चलना बेटियों को अपने पांवों पर,
न होता वितकरा उनसे रिवायत और हो जाती I
रखा था क्यों छुपा कर प्यार उनसे दिल में यूं 'कंवर'?
अगर इजहार करते तो नफ़ासत और हो जाती I
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
भाई श्याम बर्मा जी ,नवाज़िश के लिए शुक्रिया I
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय |
लक्ष्मण धामी जी आपका बहुत बहुत आभारI
भाई सुरेद्र ,ग़ज़ल पर आपकी नजर पड़ी ,धन्यवादI
आरिफ भाई हौसलाअफजाई के लिए आभार I
शुक्ला जी ,शेर के बज्न में सुधार के लिए आभार I
आदरणीय कंवर करतार जी आपकी गजल पढ़ी बहुत बहुत बधाई आपको
दूसरा शेर देखिये बहर खारिज हो रही है लफ्ज का उच्चारण कर के देखिये उसी के अनुरूप उसका वज्न तय होगा
नकावें पहन कर जिन पर हैं बरसाते कोई पत्थर , प हन 12 तो पहन का वज्न 12 होगा न कि 21
इसी तरह
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I सुबकने सु बक ने 122 के वज्न में है
इसी तरह मकते में कंवर शब्द बहर मे नहीं है
न होता वितकरा उनसे रिवायत और हो जाती I यहां वितकरा शब्द का अर्थ नहीं समझ पाए स्प्ष्ट करियेगा । सादर
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