“बेटे सुजित, कहाँ हो” शर्मा जी अपनी चाबी से मुख्य दरबाजा खोलते ही अंदर अँधेरा देख बोले Iआबाज लगाते लगाते ही घर की बत्तियाँ जलाने लगे Iज्यों ही बेटे वाले कमरे की बत्ती का बटन दबाया, कक्षा दो में पढ़ने बाले बेटे को मोबाइल पर अपने नन्हें दोस्तों से व्हाट्स एप पर चैटिंग करते देख डांटते हुए बोले, “हर समय बस चैटिंग-चैटिंग, कुच्छ होम वर्क कर लेते I उठो, जाओ अपना होम वर्क करो I”
“आइ एम सॉरी पापा --” रुआंसा हुआ सुजित बोला, “ पर पापा --आप सुवह मेरे स्कूल जाने से पहले आफिस निकल जाते हो और फिर शाम को कभी पार्टी में कभी क्लब में चले जाते हो--रात को प्रायः मेरे सोने के बाद ही आते हो---और मम्मी, मम्मी भी तो किटि पार्टियों में ही व्यस्त रहती हैं I मैं घर में किस से बात करूं – किस से खेलूं-- कोई और भाई वहन भी तो नहीं I” उसकी आँखों से अश्रु धारा फूट पड़ी I “आज आप अँधेरा होते ही आ गये-- पापा-- मुझे और डांटो—मुझ से बात करो -–मुझे गले लगा कर प्यार करो -– मेरे सामने बैठ कर मुझ से होम वर्क करवाओ पापा -- मुझे घर में अकेले अच्छा नहीं लगता I” सुजित सुबकते सुबकते पापा की ऊँगली पकड़ मानो गिड़गिड़ा रहा थाI
शर्मा जी का सर घूम रहा था I वह बेटे का सहारा ले कर सोफे पर बैठ गया और भींच कर उसे अपनी छाती से लगा लिया I ”मुझे माफ़ कर दो मेरे बेटे--आज से तुम्हारे पापा तुम्हारी दुनियां में लौट आए हैं I” धीमी आबाज में शर्मा जी ने कहा I दोनों वाप बेटा रो रहे थे I दरबाजा लांघते ही शर्मा जी की पत्नी के ममत्व पर भी सुबकते बेटे की बातें हथोड़े की तरह चोट कर रहीं थीं I दोनों से लिपट कर उसके आंसू भी आज झर झर बह रहे थे I
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
श्याम वर्मा जी ,बहुत बहुत शुक्रिया I
उस्मानी भाई .लघु कथा आपको अच्छी लगी आभारी हूँ I
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
सतविन्द्र जी बहुत बहुत धन्यावाद I
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