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मन की उपलब्धियों की ढेरी

बेकार अख़बारों की ढेरी जैसा

खाली दूध की थैली व बोतल -सा

मन की उपलब्धियों का -

माल बिक सकता है ?

कोई कबाड़ी वाला आएगा।

ये सब ले जाएगा,

पूरा-का-पूरा कबाड़ उठ जाएगा

सच्ची सजावट सुथरी हो कर निखरेगी

हर चीज यथावत रखी हुई चमकेगी ।

मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में

टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-

मुरझाया हुआ विश्वास,

फटे-पुराने जूतों सा-

बदरंग स्वाभिमान ,

टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे

टूटे बिखरे सपने,

पीतल के पिचके बटुए सरीखा

बेचारा अर्ध सत्य- 

जीवन बन गया रद्दी का अंबार,

निश्चित ही रद्दी वाला  आएगा

सारा सामान अपनी बोरी में

बटोर कर ले जाएगा 

डालेगा जाकर इक बड़े से कारखाने में -

जहां फिर से उपलब्धियां का सामान -

नया रूप ,नया रंग

लेकर ही निकलेगा ।

क्या कभी कोई ऐसा रद्दी वाला आएगा ?

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई

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Comment by kalpna mishra bajpai on May 4, 2014 at 2:03pm

आ० केवल प्रसाद सर हार्दिक आभार ।सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 11:36am

यथार्थ जीवन का कटु सत्य.....हॉं । इक दिन अवश्य ही आता है..फेरी वाला। अप्रतिम प्रस्तुति । हार्दिक बधाई। सादर,

Comment by kalpna mishra bajpai on May 4, 2014 at 7:59am

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी, हार्दिक आभार/ सादर

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:19am

क्या बात है.कल्पना जी आपने रिसाइक्लंग पर खूब कलम चलायी है.

मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में

टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-

मुरझाया हुआ विश्वास,

फटे-पुराने जूतों सा-

बदरंग स्वाभिमान ,

टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे

टूटे बिखरे सपने,

पीतल के पिचके बटुए सरीखा

बेचारा अर्ध सत्य- 

जीवन बन गया रद्दी का अंबार,.....हार्दिक बधाई.

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