बेकार अख़बारों की ढेरी जैसा
खाली दूध की थैली व बोतल -सा
मन की उपलब्धियों का -
माल बिक सकता है ?
कोई कबाड़ी वाला आएगा।
ये सब ले जाएगा,
पूरा-का-पूरा कबाड़ उठ जाएगा
सच्ची सजावट सुथरी हो कर निखरेगी
हर चीज यथावत रखी हुई चमकेगी ।
मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में
टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-
मुरझाया हुआ विश्वास,
फटे-पुराने जूतों सा-
बदरंग स्वाभिमान ,
टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे
टूटे बिखरे सपने,
पीतल के पिचके बटुए सरीखा
बेचारा अर्ध सत्य-
जीवन बन गया रद्दी का अंबार,
निश्चित ही रद्दी वाला आएगा
सारा सामान अपनी बोरी में
बटोर कर ले जाएगा
डालेगा जाकर इक बड़े से कारखाने में -
जहां फिर से उपलब्धियां का सामान -
नया रूप ,नया रंग
लेकर ही निकलेगा ।
क्या कभी कोई ऐसा रद्दी वाला आएगा ?
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
आ० केवल प्रसाद सर हार्दिक आभार ।सादर
यथार्थ जीवन का कटु सत्य.....हॉं । इक दिन अवश्य ही आता है..फेरी वाला। अप्रतिम प्रस्तुति । हार्दिक बधाई। सादर,
आदरणीया कुंती मुखर्जी जी, हार्दिक आभार/ सादर
क्या बात है.कल्पना जी आपने रिसाइक्लंग पर खूब कलम चलायी है.
मन की उपलब्धियों की इस ढेरी में
टूटे-फूटे शीशों और कनस्तर जैसा-
मुरझाया हुआ विश्वास,
फटे-पुराने जूतों सा-
बदरंग स्वाभिमान ,
टूटी -फूटी काँच की बोतल जैसे
टूटे बिखरे सपने,
पीतल के पिचके बटुए सरीखा
बेचारा अर्ध सत्य-
जीवन बन गया रद्दी का अंबार,.....हार्दिक बधाई.
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