खिलना नहीं है बाग में
मिलना है जिसको खाक में
ध्यान में उसका धरूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
विश्वास अपनों का धरूँ
उपहास अपना क्यों करूँ ?
इतिहास अपना ही लिखूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
अवसाद सपनों पर करूँ
फरियाद अपनों से करूँ
नित याद में खोई रहूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
अभिमान मन की भूल है
अरमान मन की चूक है
इस चूक को वरदान समझूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
आगोश मैं उसकी चुनूँ
खामोश मैं उसमें रहूँ
जो है सदा ही शाश्वत
मैं चलूँ, चलती रहूँ
चुन लूँ उसी के रास्ते
जी लूँ उसी के वास्ते।
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
विश्वास अपनों का धरूँ
उपहास अपना क्यों करूँ ?
इतिहास अपना ही लिखूँ
कितने दिनों के वास्ते ? वाह्ह्ह बहुत सुन्दर प्रस्तुति है कल्पना जी हार्दिक बधाई.मन में उपजते प्रश्नों को बहुत खूबसूरती से ढाला है शब्दों में भाव ,लय प्रवाह सभी द्रष्टिकोण से पसंद आई रचना.
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी हार्दिक शुक्रिया/सादर
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ला भ्रमर जी आपको रचना पसंद आई हमारे अहो भाग्य। हार्दिक आभार सर/सादर
आगोश मैं उसकी चुनूँ
खामोश मैं उसमें रहूँ
जो है सदा ही शाश्वत
मैं चलूँ, चलती रहूँ
चुन लूँ उसी के रास्ते
जी लूँ उसी के वास्ते।
आदरणीया कल्पना जी। बहुत सुन्दर भाव और उपर्युक्त पंक्तियाँ बस उसी का हो के रह जाना है
भ्रमर ५
आदरणीया कल्पना जी , एक सुन्दर गीत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ .
आ० मीना दी लय में बधाई देना मेरे मन को भा गया हार्दिक आभार। सादर
आदरणीय विजय मिश्रा जी हार्दिक आभार। सादर
आ० नीरज सर हार्दिक आभार आपका। सादर
बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!
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