ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं
******************************
आज पूजा जा रहा हूँ ।
दूर दूर से आ कर
नत मस्तक हो हज़ारों हज़ारों भक्त
दुआयें मांगते हैं , चढ़ावे चढ़ाते हैं ,
अपनी अपनी मुरादों के लिये ।
उनकी अटूट ,गहरी आस्थाओं ने, विश्वासों ने
सच में ज़िन्दा कर दिया है
मेरे अंदर , ईश्वरत्व ,
वो ईश्वरत्व
जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है ।
पूरी हो रहीं है मुरादें भी,
पर ,
कैसे कहूँ मै शुक्रिया उन हाथों का
जिनके सिद्ध हस्त प्रहारों ने
संतुलित , प्रेम पूर्ण प्रहारों ने
मुझे पत्थर से भगवान बनाया
कैसे करूँ मै धन्यवाद , क्योंकि ,
मै अनगढ़ ,
अपने प्राकृतिक रूप में ,
जैसा मुझे परम सत्ता ने बनाया था
जादा खुश था , शायद
किसी ने पूछा ही नही मुझसे,
कि , मै ,
ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं
********************* *********
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज जी, मेरे कहे को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!
पहली बात तो यह कि मैंने जो कुछ कहा वह मेरी अपनी मान्यता है. मेरी मान्यता किसी के लिए बाध्यता नहीं हो सकती.
समय की मांग का अर्थ है कि कविता और कसावट चाहती है. वह तभी संभव है जब आप कुछ और समय उसे देंगे. मेरे विचार से कविता कम बोले वही उसके लिए अच्छा होता है. जैसे मैंने एक पंक्ति कोट की थी उसकी इस कविता में कोई जरूरत नहीं. यह मेरा मानना है. आगे आप विचार कर लें.
अपने हिसाब से आपकी कुछ पंक्तियों को संशोधित करने की हिमाकत की है-
//आज पूजा जा रहा हूँ।
दूर-दूर से आकर
हज़ारों-हज़ार भक्त
दुआयें मांगते हैं, चढ़ावे चढ़ाते हैं,
अपनी मुरादों के लिए।
उनकी अटूट, गहरी आस्था, विश्वास ने
सच में ज़िन्दा कर दिया है
मेरे अंदर ईश्वरत्व
वो ईश्वरत्व
जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है।//
//ववह ईश्वरत्व
जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है।//.. इन पंक्तियों के माध्यम से जो विरोधाभास पैदा करने की अपने कोशिश की थी, वह वास्तव में खुलकर सामने नहीं आ सका.
यहाँ मैं एक बात और कहना चाहता हूँ कि कविता लिखने की सबकी अपनी स्टाइल होती है इसलिए उस पर अधिक कुछ नहीं कहा जाना चाहिए. हालांकि मैंने खुद यहाँ उस नियम का उल्लंघन किया है. मेरा उद्देश्य सिर्फ यह कहना था कि कविता बिम्बों के सहारे इशारे करती चले उसी में कविता की सुन्दरता है..
आप स्वयं समझदार हैं, योग्य हैं. आशा है मेरा इतना अधिक कहना आपने अन्यथा नहीं लिया होगा.
सादर!.
आदरणीय केवल भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीया कुंती जी , रचना की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय बृजेश नीरज भाई , 1 - विराम चिन्हों का भविष्य़ मे ध्यान रखूंगा
2- मान्यता है कि हीरे को तराशने वाले का उपकार माना जाना चाहिये , इसी भाव से प्रेरित हो कर धन्यवाद कर न पाने की बात लिखा हूँ ।
3- पूरी हो रही है मुरादें // आम लोगों की मान्यता मे भी ईश्वरत्व पास हो रही है , जिनका विश्वास मुरादें पूरी होने या न होने पर टिकी रहती है ।
अपना मंतव्य मैने बता दिया , अगर इसमे कोई गलती हो तो कृपया मेरी रचना मे सुधार करने की कृपा करें ,रचना ,समय कहाँ और कैसे मांग रही है कृपया साफ बताने का कष्ट करें , ताकि आगे कुछ सुधार की सम्भावना बने , क्योंकि क्या सही है जाने बिना सुधार सम्भव नही है । रचना को समय देने के लिये आपका आभार । सादर निवेदित
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार !!
भाईजी अतिसुन्दर प्रस्तुति । हार्दिक बधाई। सादर,
शायद ईश्वर होना बहुत बड़ी विडम्बना है.बहुत ही गूढ़ विषय लिया है अपने.
मै अनगढ़ ,
अपने प्राकृतिक रूप में ,
जैसा मुझे परम सत्ता ने बनाया था
जादा खुश था , शायद
किसी ने पूछा ही नही मुझसे,
कि , मै ,
ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं.....अनेक साधुवाद गिरिराज जी.
अच्छी कविता है. आपको बहुत बधाई!
कविता कुछ और समय चाहती है.
एक बात समझ नहीं आई- यदि पत्थर रहते ज्यादा खुश था तो फिर उन हाथों का धन्यवाद क्यों करना चाहता है जिसने उसे भगवान् बनाया.
//पूरी हो रहीं है मुरादें भी,//........? कविता के विषय के सन्दर्भ में इस पंक्ति का क्या महत्व है?
कविता के इस रूप में विराम चिन्हों का बहुत स्थान नहीं होता. अर्ध-विराम चिन्ह अनावश्यक रूप से बहुत अधिक प्रयोग किए गए हैं.
'वो' और 'वह' में अंतर होता है. ग़ज़ल के फेर ने इस अंतर को ख़त्म कर दिया है. इसे बनाए रखना बहुत जरूरी है.
आदरणीय भाई गिरिराज जी एक यथारथपर्क अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online