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ग़ज़ल - कोयला दहके तो अच्छा है ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122     2

अब हवा है , कोयला दहके तो अच्छा है        

देख ले ये बात भी कहके तो अच्छा है

 

खूब झेला पतझड़ों को, अब कोई कोना

इस चमन का भी ज़रा महके तो अच्छा है

 

सीलती सी, उस अँधेरी झोपड़ी में भी ,

देखते हैं आप जो रहके , तो अच्छा है

 

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

 

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा अगर, बहके तो अच्छा है

 

इन सजावट के सभी हर्फों को झूठा मान  

झाँक नीचे, ऊपरी तह के तो अच्छा है  

*************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  ( संशोधित )

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 27, 2014 at 8:59pm

आदरणीया प्राची जी , आपकी प्रशंसा ने मेरा गज़ल कहना सफल कर दिया , सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 27, 2014 at 3:44pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

आपकी गजलों का कहन अपने साथ बाँध लेता है...... बहुत सुन्दर अश'आर हुए हैं ...हर शेर एक गहरा एहसास है 

बहुत खूब 

मेरी ढेर सारी बधाई लीजिये इस सुन्दर ग़ज़ल पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 1:28pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी ग़ज़ल पर ऐसी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया ने आज मुझे बहुत बड़ी खुशी दी है ॥ आपका तहे दिल से आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:37am

क्या ग़ज़ब !

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

 

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा अगर, बहके तो अच्छा है

 

इन सजावट के सभी हर्फों को झूठा मान  

झाँक नीचे, ऊपरी तह के तो अच्छा है

क्या बढिया अश’आर हुए हैं.. दाद कुबूल करें आपकी ग़ज़लों की प्रतीक्षा रहने लगी है अब, आदरणीय  ..

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 22, 2014 at 9:19am

आदरणीय अरुण निगम भाई , आपकी आत्मीय  सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 22, 2014 at 9:18am

आदरणीय शिज्जू भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:54am

आदरणीय गिरिराज जी, हर शेर लाजवाब , सीधे सीधे दिल में उतरता हुआ....बधाई  हो.......

कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का

दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है

ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में

अब क़दम थोड़ा अगर, बहके तो अच्छा है

वाह, वाह, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:45pm

बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 20, 2014 at 6:28pm

आदरणीय बड़े भाई  गोपाल जी , सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 20, 2014 at 6:27pm

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका दिली शुक्रिया ॥

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