" सच! बहुत ही अच्छे इंसान थे बल्लू भैया !! क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद दिलवा ही देते थे. आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"
" हाँ भाई..! उनकी माँ के मर जाने के बाद आज उनका अपना कोई भी तो नहीं. देखा न ! पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम सबकी भी माँ थी, लेकिन आज बल्लू भैया की मृत्यु पर ......."
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
जितेंद्र भाई अब स्वार्थ का बोलबाला है जब तक स्वार्थ सिद्ध होता है हम सब उन्हें पहचानते हैं बस ..एक बड़ी बात सुन्दर लघु कथा
भमर ५
आदरणीय सौरभ जी, सर्वप्रथम लघुकथा पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ.
आपका मार्गदर्शन पाकर मैं और अधिक प्रयास करूँगा, अपना स्नेह बनाये रखियेगा.
सादर!
लघुकथा के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.
लेकिन जाने क्यों मुझे बहुत कुछ उलझी कथा लगी. माना, बल्लू भइया से लोगों का मात्र स्वार्थ का सम्बन्ध था, लेकिन यह बहुत खुल कर नहीं आ पाया कि आखिर हुआ क्या कि वे इतने बेगाने हो गये.
फिर भी आपकी रचना सोचने को बाध्य तो जरूर करती है.
शुभेच्छाएँ
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आदरनीय जितेन्द्र भाई , वर्तमान मे लोगों की मानसिकता को समझाने मे आपकी लघुकथा सफ रही !! आपको दिली बधाइयाँ ॥
रचना पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय अरुण जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी स्नेह से भरी प्रतिक्रिया से बहुत ख़ुशी मिली आदरणीय चंद्रशेखर जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
बहुत ही सुन्दर लघुकथा जीतेन्द्र भाई जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आपका ह्रदय से आभार आदरणीय राम शिरोमणि जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
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