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आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

2122   1222  2122   22/112

दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं

रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं

 

मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी

रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं

 

आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी

रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं

 

गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने

प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं

 

रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया  है

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

 

यार  माना कि पी सागर से  है मैंने छककर

बेटी अंगूर की पी यूं तू  मुझे घूर नहीं  

 

  

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:04pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपका स्नेह मुझे हमेश ही मिला है ..आपके परामर्श की तरफ ध्यान दूंगा ..मुझे भी ठीक से ध्यान नहीं है ..२२/११२ की छूट किसी ग़ज़ल में होती है फिर से देखूँगा ..बस आपका स्नेह यूं हे मिलता रहे सादर प्रणाम के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:02pm

आदरणीय नीरज जी ..मेरी रचना को प्रोत्साहन देने के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:00pm

अरुण जी ..बस यूं ही स्नेह बनाये रखें ..स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल धनयवाद ..सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 12:45pm
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपके शब्द हमेशा ही मुझे हौसला देते हैं.बस यूं ही स्नेह बनाए रखें
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 12:43pm
आदरणीया मीना जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 14, 2014 at 10:36am

आदरनीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ !! इस बह्र मे 22 को 112 करने की छूट है या नही,  मुझे शंका है ।

Comment by Neeraj Neer on May 12, 2014 at 10:18pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल.. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 2:48pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय आशुतोष जी बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 9:00am

रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया  है

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं.........वाह! लाजवाब शेर

बहुत बेहतरीन गजल कही आपने आदरणीय डा.आशुतोष जी, हार्दिक बधाई आपको

 

Comment by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:23pm

क्या बात है ... लाजवाब ... ढेरों दाद कबूलें आदरणीय 

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