2222 2112 2 222
देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे
कोई तो समझाए उन्हें दिल भी टूटे
हमसे कहते यार कभी भी मत पीना
खुद पीते मयख्वार बड़े ही हैं झूठे
यारों अपने पास नशे की वो दौलत
चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे
माया ममता त्याग कठिन होता कितना
मय जब उतरे यार गले सब कुछ छूटे
हमको ये मालूम हुआ मैखाने आ
कहकर मय को शेख बुरा मस्ती लूटे
मैखाने से देख निकलना मयकश का
डगमग डगमग डिगे कदम सर भी फूटे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
क्यों नहीं .. रदीफ़ रहे तो शिल्प बेहतर दीखता है.. आपकी इस ग़ज़ल में ट और ठ के अलावे अन्य अक्षर नहीं हैं. जबकि अन्य अक्षर लिये जा सकते थे .. मगर फिर ह शेर कैसा लगता आपको भी मालूम है. यही कहना है मेरा..
आदरणीय सौरभ सर ..कृपा करके बताने का कष्ट करें क्या ऐ की मात्रा को बतौर काफिया लिया जा सकता है की नहीं ..बैसे आदरणीय शिज्जू जी के मार्गदर्षन के अनुरूप बहर में उनके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन करने काप्रयास कर रहा हूँ .आदरणीय सर आपसे हर दिन कुछ न कुछ सीखने को मिलता है आपका ये आशीर्वाद हम जैसे ग़ज़ल की राह पर चलने वाले नए मुसाफिरों के लिए प्रेरणा होता है ..सादर प्रणाम के साथ
ए की मात्रा को काफ़िया माना है आपने !
सुन्दर गज़ल हेतु बधाई स्वीकारें.. सादर
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल सुन्दर कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । बह्र के विषय मे आदरणीय शिज्जू भाई जी से मै भी सहमत हूँ ॥
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे ..हार्दिक धन्यवाद के साथ
अरुण जी ...हौसला अफजाई केलिए तहे दिल धन्यवाद ..आप सबकी प्रतिक्रियाओं से ही मैं निरंतर अपने रचनाओं में सुधार कर पा रहा हूँ ..बस यू ही स्नेह बनाए रखें सादर
आदरणीय शिज्जू जी ..आपके सुझाव पर अमल जरूर करूंगा ..बहर परिवर्तन के बिषय में आपसे चर्चा भी करूंगा ...आप मेरी रचना पर मुझे बस इसी तरह आगाह करते रहे ताकी अगली रचना उस दोष से मुक्त हो सके ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद .सदर
यारों अपने पास नशे की वो दौलत
चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे............वाह! क्या बात कही, बधाई आदरणीय डा.आशुतोष जी
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