“इससे अच्छा तो मैं अपने जीवन का ही अन्त कर लूं , अब क्या रखा है इस जीवन में . बेटी ने भाग कर शादी कर ली और बिरादरी में मेरी नाक कटा दी , एक लड़का है जिससे कुछ उम्मीदें थीं पर वो भी अब आवारा ही निकल गया , उसकी बद्तमीजियां दिन पर दिन बढती ही जा रही हैं. पत्नी भी सीधे मुह बात नहीं करती.” इस प्रकार सार्जेंट अभिलाष के जीवन जीने की अभिलाषा सामाप्त होती जा रही थी. हर पल वो सोच के समन्दर में डूबता जा रहा था और उतना ही अवसाद (डिप्रेशन) उसपर हावी होता जा रहा था. वो कहते हैं ना कि विपत्तियां आती हैं तो हर तरफ से आनी शुरू हो जाती हैं. आजकल सेक्शन में भी एम डब्लू ओ आई सी साहब कुछ नाराज़ नाराज़ से रहते हैं और किसी के भी सामने कुछ भी कहने लगते हैं. ये सब बातें शेयर करने के लिए भी कोई न था सो अपने आप से ही सार्जेंट अभिलाष जैसे बातें कर रहा था.
सालों कि सर्विस के बाद अभिलाष का शरीर वैसे तो स्वस्थ दिखता था परन्तु ब्लड प्रेशर व हाइपरटेंशन ने उसके शरीर में घर बना लिया था. “सोचता हूँ कि सर्विस से रिटायरमेंट ले लूँ.....पर फिर क्या करूँगा खाली बैठने से तो काम नहीं चलेगा अगर बाहर दूसरी नौकरी की तो हालत पतली हो जाएगी.” ऐसे ख़याल उसके मन में आते जाते रहते थे. उस दिन तो इन्तेहाँ ही हो गई जब उसे पता चला उसका अपना लड़का स्कूल जाने के बजाय आवारा लड़कों के साथ घूमता है और उसका अटेंडेंस बहुत ही कम होने के कारण उसे परीक्षा में बैठने से मना किआ जा रहा है. और तो और उसने शराब और सिगरेट पीना भी शुरू कर दिया है. ये बातें पता चलने पर अभिलाष आग बबूला हो गया और बेटे को डांटने लगा. पर बेटा कहाँ सुनने वाला था, सुनना तो दूर उसने बाप को ही भला बुरा कहना शुरू कर दिया और कहा कि अब मैं बड़ा हो गया हूँ जो चाहूँ करूँ. ऐसी बातें कहकर वह पैर पटककर और दरवाज़ा गुस्से से खोलकर चलता बना.
आज अभिलाष को लगा कि जीवन का अंत कर लेना ही सबसे सरल रास्ता है. ब्लड प्रेशर बढ़ने पर इस प्रकार के विचार अक्सर आने लगते थे पर इस बार यह विचार केवल कुछ समय के लिए ही नहीं रहा वरन अभिलाष इसे कार्यरूप में परिवर्तित करने के लिए विचार करने लगा.
अभिलाष हेलिकॉप्टर यूनिट में था तथा शाम को मेसेज मिला कि उत्तराखण्ड में आई आपदा के मिशन वाले दल में उसका भी नाम है. उसके दिमाग़ में तो फितूर पहले से ही चल रहा था, उसने सोचा कि चलो अब देवभूमि में ही चलकर प्राण त्याग दिए जाएँगे. वहीँ हेलिकॉप्टर के ब्लेड से स्वाहा हो जाऊंगा. और किसी की तो फिकर नहीं पर पत्नी को जीते जी कुछ न दे पाया शायद मरकर ही कुछ काम आ सकूँ.
आज उसके जीवन कि आखिरी रात थी. उसने अपने पूरे जीवन को याद किया. आलमारी में से उसने अपनी पुरानी एल्बम निकाली और पुरानी फोटो निहारने लगा. देखते-देखते वह अपनी शादी के समय की फोटो पर पहुंचा.
“कितना खुश हुआ करता था मैं, जाने किसकी नज़र लग गई.” उसने उत्तराँचल वाली फोटो देखी जहाँ शादी के बाद वह पत्नी के साथ घूमने गया था. उसे याद आया कि उसने वहां कितना बढ़िया वक़्त गुज़ारा था. फिर वो डिनर वाली फोटो आई. दरअसल जिस होटल में वो ठहरा था उसका मालिक सेना के लोगों का बड़ा मुरीद था, रही होगी कोई बात. उसी वक़्त होटल की पांचवी वर्षगाँठ भी थी. “होटल के मालिक ने अपनी तरफ से उपहार स्वरुप हमें उस रात डिनर कराया था, नफ़ासत की तो कोई कमी ही न थी. आजकल तो उसका होटल उत्तराँचल का सर्वश्रेष्ठ तथा पांचसितारा होटल है. वह आजकल एक बहुत ही प्रसिद्ध आदमी है.”
इसप्रकार वह उस दुखदाई शाम का पूरा आनंद लेता गया और ज्यादा किसी से कुछ न बोला. अगले दिन ठीक से नहा-धोकर तैयार हुआ पर हर काम करना उसे बेमानी लाग रहा था. सबकुछ यथावत हुआ तथा वह मिशन राहत में शामिल हुआ. उत्तराँचल के ऊपर से उसका जहाज गुजर रहा था, “वाकई कुदरत ने कहर बरपा दिया है, जिसे जो चाहिए उसे वह नहीं मिलता, यहीं देख लो.” वह इन बातों को सोचता रहा और खिड़की से बाहर झांकता रहा तभी उसका जहाज़ एक पठार पर लैंड किया. अबतक ज्यादातर लोग रेस्क्यू किए जा चुके थे, उन्हें अब बाकी लोगों का पता लगाना था. रेस्क्यू टीम काम पे लग गई, सार्जेंट अभिलाष भी अपनी आखिरी अभिलाषा पूरी करने की योजना में था तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी. हेलीकॉप्टर के ब्लेड रुक चुके थे चारों तरफ बिल्कुल शांती थी उस शांती को भंग करती वह आवाज़ पुनः आई.
“आ....ह ..............बचा..ओ.”
अभिलाष उस दिशा में बढ़ चला.
“यह क्या किसी के जूते लगते हैं, अरे हाँ पूरा पैर ही है. ओह माई गॉड यह तो कोई आदमी है जो मलबे में पूरी तरह से दबा हुआ है.”
उसने देखा तो उसके साथी थोड़ी दूर जा चुके थे, तुरंत ही उसने उस शरीर पर से मलबा हटाना शुरू कर दिया. पूरा शरीर बुरी तरह जख्मी था, कई हड्डियाँ टूट चुकी थीं पता नहीं जीवित कैसे था. उसके मुंह पर लकड़ी का तख्ता पड़ा हुआ था शायद इसी वजह से उसका उसका सिर सुरक्षित बचा था और वह किसी तरह से सांस ले पाया था. इतनी बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद अपनी अधखुली आँखों से उसने अभिलाष को देखा और जीवन कि उमंग उसके शरीर में दौड़ गई.
“अरे यह क्या ये तो वही आदमी है. वही होटल का मालिक.” अभिलाष स्तब्ध रह गया. वह मलबा और तेजी से हटाने लगा और सारा मलबा हटाने के बाद उसे थरमस से पानी पिलाया. अरे..... जिस आदमी के मुह से अभी आह नहीं निकल रही थी वो अब बात करने के लिए तैयार था. चार दिनों तक मलबे में दबे रहने के बाद भी यह जिजीविषा?
“साहब आपकी यह जंगल वाली वर्दी देखते ही मुझे पता चल गया कि मेरी जान बच गई.” घायल ने अधखुली आँख को थोड़ा और खोलते हुए कहा.
“पर आपका तो पूरा होटल और घर सब पानी में बह गया है.” अभिलाष ने आश्चर्य मिश्रित निराशा से कहा.
“कोई बात नहीं साहब, जान है तो जहान है. असल में आप लोगों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है, जिस तरह आप लोग विकट परिस्तिथियों में भी अपना काम करते हो..........आह...”
पर वास्तव में तो प्रेरणा किसी और को ही मिल रही थी. तबतक बाकी साथी भी सहयोग के लिए आ गए. अभिलाष के मन में अब नई अभिलाषाएं आ गईं, उसने सोचा कि वाकई पृथ्वी गोल है क्योंकि जिस बिंदु को मैं अन्त समझ रहा था वो तो प्रारम्भ निकला.
(मुकेश राय)
स्क्वाड्रन लीडर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
समसामयिक घटना को आधार बना कर लिखी गयी एक अच्छी कथा के लिए हार्दिक बधाई लें, आदरणीय. यह कथा जीवन के प्रति उत्साहित करती है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय मुकेश जी ....साहित्य का उद्देश्य वाकई यही है ..बेहद खूबसूरत सदेश समाहित किये इस रचना पर मेरी तरफ से तहे दिल बधाई ..सादर
जहाँ व्यक्ति अपने आप निराश होता है वहाँ उसे खुद के बारे में न सोच दूसरों के बारे में सोचना चाहिये शायद वो अपने न सही दूसरों के अंदर एक आशा संचार कर सके इसी बहाने खुद को भी जीने की वजह मिल जायेंगी, जान का क्या है जब जाना हो चली जायेगी।
आदरणीय Squadron Leader Mukesh Rai सर बेहतरीन रचना है निराशा से शुरुआत हुई और एक मकसद पर जाकर खत्म हुई, बहुत बहुत बधाई आपको
प्रेरणा प्रद
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