गजल अश्क
212 212 212 212
गीत उसके लिखे गुनगुनाता रहा
हाल दिल का सभी को बताता रहा
ये उदासी भरी जिन्दगी क्योंं मिली
सोच कर अश्क मैं तो बहाता रहा
हम को उसके शहर में मिली मौत थी
लाश अपने शहर में जलाता रहा
चाँद में दाग है चाँदनी में नही
बात दिल को यही मैं बताता रहा
प्यार से चल सके ना कदम दो कदम
जाम पी पी तुझे तब भुलाता रहा
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
प्यार हमने किया प्यार तुमने किया
कोइ हसता रहा कोइ रोता रहा......बहुत खूब. सरल और सुंदर. हार्दिक बधाई.
आ० अखंड गहमरी जी
हम को उसके शहर में मिली मौत थी
लाश अपने शहर में जलाता रहा...................बहुत सुन्दर
दूसरे शेर में सिनाद दोष भी है और तकाबुले रदीफ़ भी है...गौर कीजिये
इस सुन्दर प्रयास पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं
सुंदर गजल के लिए बधाई आदरणीय अखंड गहमरी जी।
जैसा कि आशीष श्रीवास्तव जी ने फरमाया, दूसरे शेर का काफिया दोषपूर्ण है। इसमें सिनाद दोष है। सिनाद दोष यानी हर्फे रवी से पूर्व दीर्घ स्वर का विरोध।
आपने मतला में 'गुनगुनाता' और 'बताता' को वकाफी चुना है। ऐसे में जरूरी है कि अन्य अशआर के काफिए में 'आ' के साथ—साथ 'त' को भी निभाया जाए। लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि 'त' से पहले आने वाला स्वर भी एक ही रहे। मतले के वकाफी में 'त से पहले 'आ' स्वर आया है। लेकिन काफिया 'रोता' में 'त' से पहले 'ओ' स्वर आ रहा है। यानी के हर्फे रवी से पहले दीर्घ स्वर का विरोध हो रहा है। यही सिनाद दोष है।
सादर।
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............... |
आदरणीय गजल पर बधाई किन्तु में शेर में काफिया दुरुस्त नहीं है कृपया उस पर पुनह देखें
प्यार हमने किया प्यार तुमने किया
कोइ हसता रहा कोइ रोता रहा
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