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ग़ज़ल : पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२

कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,

पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।

शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,

शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।

जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,

जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।

दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,

भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो।

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,

और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।

-

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:44pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Saurabh  जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2014 at 1:01am

बतियाती और सचेत करती बहुत खूब ग़ज़ल हुई है, आदरणीय
ढेर सारी दाद कुबूल करें.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 11:19am

बहुत बहुत शुक्रिया BHRAMAR जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 11:19am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ गिरिराज जी। स्नेह बना रहे।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 2:54pm

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,

और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।

सुन्दर भाव ...अच्छी रचना ....बात बन जाए अगर बदलाव धनात्मक हों
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 26, 2014 at 12:30pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही , आज के जीवन की सच्चाइयाँ बयान करते आपके सभी अशआर सुन्दर लगे ।

कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,

पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।

शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,

शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।

जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,

जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।

दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,

भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो। --------- हार्दिक बधाइयाँ , इस अशआर के लिए ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:11am

शुक्रिया vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:11am

धन्यवाद laxman dhami जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:10am

बहुत बहुत धन्यवाद vijay nikore जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:10am

शुक्रिया rajesh kumari जी

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