बह्र : २१२२ २१२२ २१२२
कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,
पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।
शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,
शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।
जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,
जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।
दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,
भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो।
नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,
और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Sarita Bhatia जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ बृजेश नीरज जी
शुक्रिया Meena Pathak जी
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
कमाल की ग़ज़ल है आदरणीय बहुत सुन्दर ...सादर
नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,
और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।......क्या खूब कहा आदरणीय , बहुत बहुत बधाई .
बहुत बहुत शुक्रिया डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
धन्यवाद arun kumar nigam जी
शुक्रिया MUKESH SRIVASTAVA जी
इस सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय।
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