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ग़ज़ल : पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२

कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,

पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।

शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,

शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।

जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,

जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।

दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,

भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो।

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,

और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।

-

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:10am

बहुत बहुत शुक्रिया Sarita Bhatia जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:09am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ बृजेश नीरज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:09am

शुक्रिया Meena Pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:09am

बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी

Comment by vandana on May 25, 2014 at 6:48am

कमाल की ग़ज़ल है आदरणीय बहुत सुन्दर ...सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2014 at 11:34am

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,

और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।......क्या खूब कहा आदरणीय , बहुत बहुत बधाई .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2014 at 11:05am

बहुत बहुत शुक्रिया डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2014 at 11:04am

धन्यवाद arun kumar nigam जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2014 at 11:04am

शुक्रिया MUKESH SRIVASTAVA जी

Comment by vijay nikore on May 22, 2014 at 10:08am

इस सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

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