२२२ ११२ १२२
नानी अब न कहे कहानी
राजा खोये नहीं वो रानी
रेतीली वो नदी पुरानी
गुम पैरों कि मगर निशानी
बोली तुतली हिरन सी आँखे
जाने खोयी कहाँ दिवानी
बचपन बीत गया है पल में
मुरझाई सी लगे जवानी
देखेंजब भी जहर हवा में
बहता आँख से मेरी पानी
भूली सजनी किये थे वादे
उंगली में है पडी निशानी
बिसरा पाये कभी नहीं हम
गांवों वाली हवा सुहानी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुमनाम जी ..मेरी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक पर्तिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..रुक्न केविषय में बिद्वात्जानो की प्रतिक्रिया का मुझे भी इंतज़ार रहेगा ..सादर
नानी अब न कहे कहानी
राजा खोये नहीं वो रानी
भूली सजनी किये थे वादे
उंगली में है पडी निशानी
अच्छी गज़ल के लिये बधाई,,,,,,बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल,,,,,,,,,,,,,,,
आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल के लिये बधाई !! बह्र के रुक्न के विषय मे शंका है , जानकारों का इंतिज़ार करें ॥
आदरणीय कुंती जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
नानी अब न कहे कहानी
राजा खोये नहीं वो रानी
रेतीली वो नदी पुरानी
गुम पैरों कि मगर निशानी
बोली तुतली हिरन सी आँखे
जाने खोयी कहाँ दिवानी......बहुत सुंदर....आशुतोष जी. हार्दिक बधाई.
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आप हमेशा ही अपनी प्रतिक्रियाओं से मेरा हौसला बढाते हैं ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे..सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय गोपाल सर ..आपकी बड़ों का आशीर्वाद बस यूं ही मिलता रहे बस इसी आकांक्षा के साथ ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय श्याम जी . मेरी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
जीवन में सिर्फ यादें रह जाती है .बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल, बधाई आदरणीय डा.आशुतोष जी
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