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हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

२१२२ २१२२ २१२२ २१२
हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं
दुनिया मुझको ही पढेगी ये जरूरी तो नहीं

फ़ौज सरहद पे खडी हो चाहे दुश्मन की तरह
कोई गोली भी चलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज सागर हाथ में माना कि मेरे दोस्तों
प्यास पर मेरी बुझेगी ये जरूरी तो नहीं

इन चिरागों में भरा हो तेल कितना भी भले
रात भर बाती जलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज उसकी ही खता है खूब है उसको पता
मांग पर माफी वो लेगी ये जरूरी तो नहीं

जोड़ लो दुनिया की दौलत जीत लो हर जंग ही
जिन्दगी हँस के कटेगी ये जरूरी तो नहीं

मुस्कुरा के इक हसी ने बात कर ली है अगर
हमसफ़र भी वो बनेगी ये जरूरी तो नहीं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 10:40am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आप की प्रतिक्रियाओं से मुझे हमेशा ही उर्जा और चिंतन की दिशा मिलती है ,,यूं ही आपका स्नेह मिलता रहे सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 10:37am

आदरणीय सौरभ सर ..सर सादर प्रणाम ..आपकी प्रतिक्रिया को पढ़कर हमेशा ही नूतन उर्जा मिलती है अथवा चिंतन को एक दिशा .आपके प्रतिक्रियाये  पढ़कर प्रकृति पर पढी ये पंकितियाँ बरबस याद आती हैं ..अनजानी भूलों पर भी वह अदय दंड तो देती है ,.पर बूढों को भी बच्चों सा सदय भाव से सेती है ..आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे इस कामना के साथ ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2014 at 4:41am

रदीफ़ ही इस ग़ज़ल को सुफ़ियाना अंदाज़ देता हुआ है. और आपने उसी लिहाज़ में निभाया भी है.

दिल से शुक्रिया इस ग़ज़ल के लिए

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 1:33pm

आदरणीया राजेश जी ..मेरी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 3, 2014 at 9:32pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

जोड़ लो दुनिया की दौलत जीत लो हर जंग ही
जिन्दगी हँस के कटेगी ये जरूरी तो नहीं  ------ बहुत खूब , भाई जी बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2014 at 11:12am

अति सुंदर गजल बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2014 at 10:53pm

फ़ौज सरहद पे खडी हो चाहे दुश्मन की तरह 
कोई गोली भी चलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज सागर हाथ में माना कि मेरे दोस्तों 
प्यास पर मेरी बुझेगी ये जरूरी तो नहीं--बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है ,और ये दो शेर तो कमाल के हैं ,तहे दिल से बधाई 

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:49am

वाह बहुत खूब .. क्या कहने हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं 
दुनिया मुझको ही पढेगी ये जरूरी तो नहीं.. बहुत बढियां लिखा है.. बधाई ये ग़ज़ल तो अच्छी बन गयी ..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 4:06pm

आदरनीय विजय सर..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मेरे लिए एक आशीर्वाद है ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by vijay nikore on May 30, 2014 at 11:38am

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय।

 

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