२१२२, २१२२,२१२२, २१२२
क्या सुनाऊं दोस्त तुझको ज़िन्दगानी की कहानी,
चार सू तूफ़ान हैं और अपनी कश्ती बादबानी.
***
जब मिले पहले पहल तुम, ख्व़ाब थे रंगीन सारे,
सुर्ख आँखें हैं मेरी उस दौर की ज़िन्दा निशानी.
***
याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,
जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.
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देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब,
जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी.
***
खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए जज़्बात मेरे,
क्या बने मिसरा-ए-ऊला क्या बने मिसरा-ए-सानी.
***
“नूर” भटकेगा हमेशा टीस इक दिल में छुपाकर,
जो नज़र से कह न पाया काश कह देता ज़ुबानी.
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निलेश "नूर"
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,
जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी..............वाह! बहुत खूब, दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय निलेश जी
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