For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

{विश्व पर्यावरण दिवस पर सादर प्रस्तुत ]

एक कहावत है जो हिंदी आधारित लगभग सभी आंचलिक भाषाओँ में प्रचलित है , “ जेई डाढ बैसी ,ओकरे काटी |” , जब विद्योत्तमा से परास्त विद्वानों ने एक महामूर्ख ढूंढने की चेष्टा कियी तो उन्हें सबसे मूर्ख वही लगा था जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर बैठा था |कभी सोचा है कि हम सभी प्रदुषण की दृष्टि से कुछ इसी श्रेणी के बनते जा रहे हैं |
यह तो परिपाक है कि हमारा शरीर प्रकृति के पांच तत्वों से निर्मित है – आकाश , हवा, आग, पानी और धरती , जो हमारे पांच ज्ञानेन्द्रियों को संज्ञानता देता है और प्रभावित भी करता है |
सबसे पहले आकाश तत्व के मानव शरीर पर उपकार को देखें तो समझ में आता है कि यह पारदर्शी किन्तु अत्यन्त छोटे कणों से निर्मित है और इन कणों के कम्पन से ही ध्वनि उत्पन्न हुआ और यही हमारे श्रवण शक्ति का संचालक है |इन्हें हमारे ऋषियों ने पिता का संबोधन दिया |
दूसरा तत्व है वायु | सर्वविदित है वायु से ही प्राण उर्जा का संचार होता है |साँस ही आस है अन्यथा शरीर एक लाश है | वायु से हमें स्पर्श की अनुभूति होती है |हवा बहे तो हमारा मन –प्राण प्रसन्न हो जाए |प्रत्येक ऋतुओं के परिवर्तन में हवा अपना मिज़ाज बदलती है और हम इसे सिद्दत से महसूसते भी हैं , कभी ठंढ ,कभी उष्णता ,कभी आद्रता तो कभी वासंती फिजा|यह सब अनुभूति स्पर्श से ही हमें होती है |
तीसरा तत्व है अग्नि | यह हमें दृष्टि प्रदान करता है ,यह न होता तो प्रकाश न होता और फिर देखना एक कल्पना होती ,सबकुछ तमोमय होता |धुप्प अँधेरे में हमारे जीवन की क्या स्थिति होती ,सोंचकर ही भयानुभूती होती है |एक बात और आग की एक विशेषता है कि यह हजार से लाख गुणित प्रतिक्रिया देता है ,कुछ अपने पास नहीं रखता |इससे खिलबाड़ कदापि नहीं करनी चाहिए ,विश्वास न होतो एक सुखा मिर्चा इसके हवाले करके देख लीजिए मगर हम इसके साथ भी खेलने लगे हैं और उसका दुःख भी नित्य नियमित भुगत रहे हैं |सबसे अधिक प्रदुषण उत्सर्जन का यह व्यापक स्रोत बनता जा रहा है |
चौथे तत्व के रूप में हमें प्रकृति ने जल दिया ,यही जीवन है |शरीर में लगभग अस्सी प्रतिशत केवल जल है | इन्हें निकाल लिया जाए तो जीवन का सौन्दर्य देखते बनता है- कंकाल ही शेष बचता है | हाँ जल ही है जो हमें रसास्वादन कराता है | हम बीमार के मुख से ये अवश्य सुनते हैं कि स्वाद बिगड़ गया है ,कुछ खाओ स्वाद ही नहीं लगता ,खाने की इच्छा मरती जा रही है |यह होता है जीभ के शुष्कता के कारण ,शरीर में जल के अभाव के कारण |
पाँचवां तत्व है हमारी धरतीमाता , न होती तो हमारे सूंघने का ज्ञान शून्य होता |सबकुछ गंधहीन लगता , सुगंध ,दुर्गन्ध आदि इन्हीं से उत्पन्न है |घ्राण शक्ति इन्हीं की कृपा से हमें प्राप्त है | इस पृथ्वी माँ का हृदय आकाशामृत से ही सम्बद्ध है ,वैज्ञानिक दृष्टि से इसका मुल्यांकन सहज ही हो जाता है , गुरुत्वाकर्षण ,तथा इसकी गतिशीलता इसके संतुलन का कारण है |तभी तो हमारे ऋषियों ने मार्गदर्शन दिया
“ॐ द्यो शान्तिरन्तरिक्षः शांतिः रोषदयःशान्तिः|वनस्पतयःशान्तिर्विश्वे देवाःशान्तिब्रह्म शान्तिः सर्वः शान्ति शान्तिररेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॐ|“ –यानि जल ,ओषधी , अन्तरिक्ष ,वनस्पति ,प्रकृति ,विश्वदेव तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हमें शांति दें |यहाँ तो शांति की भी शांति केलिए एक देव रूप में स्तुति कियी गयी है |
यज्ञ –याज्ञ ,पूजा ,संस्कार आदि किसी भी शुभकर्म पर किया जानेवाला ‘शांति पाठ’ या ‘स्वस्तिवाचन’ का अंतर्भाव हम स्वेम विस्मृत किये बैठे हैं |हमने धरती ,आकाश ,हवा ,पानी ,आग सबकी रंगत बिगाड़ दियी है |हमारी जीवन पद्धति अप्राकृतिक हो गयी है | हम अपनी सुख-सुविधा के लिए प्रकृति दोहन के नित्य नये तकनीक विकसित कर रहे हैं और इनकी उत्पादन प्रक्रिया ऐसी है कि उसमें ही प्रकृति का विनाश निहित है |हिमशिलाओं का तीव्रता से पिघलना , समुद्र के जल स्तर का बढना , जिसकी रुद्रता का दर्शन हमें यदाकदा होने लगा है | समुद्र तो हमारे लिए एक नम्बर कचरा का डंपिंगयार्ड और आण्विक-परमाण्विक परीक्षणों का विश्वव्यापी प्रयोगशाला या शोधशाला बना हुआ है ,नतीजतन कई छोटे –छोटे द्वीप जल समाधि लेने वाले हैं ,विश्व में समुद्र के किनारे बसे कई महानगरों को असुरक्षित घोषित कर दिया गया है | हम भूगर्भ के जल का भी दोहन कराचुर कर रहे हैं ,जल-स्तर निरंतर गिरता जा रहा है,इसके संरक्षण की कोई चिंता नहीं |विश्व की लगभग सभी नदियाँ बिषैली हो चुकीं हैं |जिसका कुप्रभाव रोग रूप में सर्वत्र दिखने लगा है | छोटे –छोटे बच्चों का गुर्दा ,ह्रदय और आंत सुख जा रहा है |उसने इस छोटी उम्र में कौन सा कुपथ्य कर लिया भाई ? स्मरण रहे ईश्वर ने सभी को सौ साल की आयु दियी है,उस बच्चे को भी |लीजिए अपनी करनी का नतीजा बाढ़ ,भूकम्प ,आंधी-तूफान , पहाड़ों का दरकना ,बादलों का फटना ,महामारियों का फैलना , नित्य नयी बीमारियों का जन्म लेना |हद हो गया ,केवल बुखार के ही एक हजार से ज्यादा प्रकार हैं और नये-नये बुखार का इजाद हम अपनी कारगुजारियों से रोज करते जा रहे है ,जय हो प्रदुषण महाराज की |ओजोन की पट्टी पतली हुई जा रही है , इस गैस के अभाव में निरंतर वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि होता जा रहा है | और काट-काटकर सत्यानाश करो गाछ-वृक्ष का और सर्वनाश करो अपना |
नए नए यांत्रिक अनुसंधान , प्रयोग ,अविष्कार और जनोपयोगी सामग्रीओं का बाजार उपस्थित होने लगा है , सुख -सुबिधा , आवश्यक -अनावश्यक, नैष्ठिक -अनैष्ठिक वस्तुओं का भरमार सुगमता से उपलब्ध हो गया , सुख ने तप को किनारा कर दिया है | वाह रे आदमी ! क्या तरक्की किया है ? कितनी वैज्ञानिक प्रगति कर चुके हैं हम ! जीवन आधारित बाजार नहीं रहा ,विज्ञापन प्रायोजित सुंदर जंजाल खड़ा हो रहा है | हमारी बस्ती-मोहल्ले में लग रहे ये मोबाइल टावर प्रदूषण का अजस्र श्रोत है और यह बिना माध्यम के रेडिएशन द्वारा अपने दुष्प्रभाव हम सभी जीवों तक पहुंचा रहा है | चिरिया [गोरैया ,मैना ,बुलबुल ,कबूतर ,चील ,गीद्ध ,कौवा आदि ] समाप्त होती जा रही है , अगली पीढ़ी तो ‘कलरव’ शव्द की मात्र कल्पना ही कर सकेगा | जानवर मरते जा रहे हैं और हमारी निर्भीकता तो देखिए कि हम अपने को अमर माने बैठे हैं , खुद को इन सबसे अछूता समझ रहे हैं | धृष्टता नहीं तो और क्या है ?
पृथ्वी मात्र और एकमात्र स्रोत या महास्रोत है ,चाहे जल हो ,अन्न हो ,लकड़ी हो, पेट्रोल -डीजल से गैसोलीन ,एटोमिक फ्युएल हो ,खनिज हो ,अयस्क हो , रसायन हो ,इंधन हो , कोई भी संसाधन हो ,लोहे से सोने तक , स्फटिक से हीरा तक ,नजर डालिए या तो प्रत्यक्ष धरती से प्राप्त करते हैं या फिर परोक्ष रूप से , और कोई सोर्स नही है और समूचा संसार है बेरहम ,बेदर्द ,विचारहीन उपयोक्ता | उपयोक्ता कम ही है ज्यादा तो लुटेरों की तरह भोग करने वाले उपभोक्ता हैं ,जिन्हें सभी संसाधनों को नोंचकर अपने घर में भर लेने की लगी है ,जिन्हें अपनी आने वाली पीढ़ी की भी फ़िक्र नही ,यह भी चिंता नही कि विचारहीन की तरह इस्तेमाल करने से यह सिमित संसाधन अचानक चूक जायेगा | यन्त्र केवल अलग-अलग प्रक्रियाओं से धरती से प्राप्त संसाधनों का परिष्करण करता है और उसका स्वरुप बदलकर सहज उपयोग के अनुरूप बना देता है किन्तु इस क्रम में ये यन्त्र ,उपकरण ,दैत्याकार मशीन बहुत सारे सेकेंडरी प्रोडक्ट ,बाई प्रोडक्ट ,स्लेग्स ,जहरीले गैस आदि का उत्सर्जन ,विसर्जन वायुमंडल में करना शुरू करता है , वृक्षों को हटा यंत्रों ने अपना विस्तार करना प्रारम्भ किया ,आदमी ने वृक्षों को काटना शुरू किया . कह नही सकता कि कितने प्रकार से विघटन करना और क्षति पहुंचाना शुरू किया , कभी एटम का धमाका , कभी न्यूक्लियर टेस्ट ,कभी मिशाइलटेस्ट और इस सबका विध्वंसक प्रभाव अब केवल धरती ही नहीं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड झेल रहा है और प्रकृति का नियम है कि यह आपके आचरण के अनुरूप ही आपको परिणाम देती है . नतीजा हम देख रहे हैं ,जल अशुद्ध , आहार अशुद्ध ,वायु अशुद्ध और मनुष्य रोगों का बण्डल हो गया है ,बाध्य है भोजन की जगह औषधि खाने को , नींद की जगह नींद की गोली खाने को |

हम दिनानुदिन अप्राकृतिक जीवन में आनंद ले रहे हैं और प्रकृति के कोपभाजन बनते जा रहे हैं और अब इसका विकल्प चाह रहे हैं ,हम मन ही मन इस आपा -धापी से ऊब भी रहे हैं ,मुक्ति की चाहना करने लगे हैं ,भयग्रस्त भी हैं | " सबकुछ है ,खा नही सकते ,साधन है लेकिन सुख नही सुहाता " की स्थिति से सुबिधा-सम्पन्न लोग उबने लगे हैं | यह छटपटाहट अब कुछ और खोजने लगा है जो उसे रोगमुक्त ,शोकमुक्त ,कष्ट्मुक्त जीवन पद्धति दे सके |
याद रहे व्यक्ति ही संसार की अंतिम इकाई है अन्यथा परिवार ,समाज ,देश ,संसार की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है और इस नाते प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व होता है कि वह इस ईश्वर प्रदत्त मनोरम संसार के संरक्षण के लिए कुछ न कुछ नित्य करे और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करे | संज्ञाशून्य सा आचरण तो हम कर ही रहे हैं , आगे ऐसा न हो कि हमारी संतति हमारे निश्चेष्ट कुकृत्यों का दण्ड भुगते , उनकी अन्य इन्द्रियाँ भी क्षीण हो जाएँ और बच्चे गूंगे ,बहरे ,स्वाद ,रंग,गंध का बोध भी गवाँ बैठें ,उनमें बिक्षिप्तता आने लगे , याददास्त खोने लगे , | ”लम्हे ने खता की और सदियों ने सजा पायी “ - जैसी असाम्य स्थिति से उबरना और उबारना हमारा नैतिक दायित्व और एकनिष्ठ धर्म बनता है |प्रदुषण महाकाल का रूप ले रहा है और हमें हमारी महामुर्खता के प्रति आगाह भी कर रहा है ,शेष हमपर है कि हम इसे किसप्रकार से ग्रहण करते हैं |
वृक्षारोपण ,जल संरक्षण , वातावरण की स्वछता ,आधुनिक संसाधनों का न्यूनतम उपयोग ,प्रकृतिस्थ जीवन –यापन ,शुद्ध तथा शाकयुक्त सदा भोजन आदि तो सरलता से जीवन में लाया जा सकता है | टीवी – कमप्यूटर ,इंटरनेट का, मोबाइल आदि का कम से कम प्रयोग करें,ये घंटों इनके साथ बैठने की चीजें नहीं हैं | सवेरे उठिए , थोड़ा टहलिए , व्यायाम-प्राणायाम भी करिए ,क्रोधित होने से बचिए | प्रकृति है .... सुधरिये नहीं तो सुधार देगी |

विजय मिश्र
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1117

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on June 21, 2014 at 11:51pm

बहुत सुन्दर ....नमन

Comment by विजय मिश्र on June 16, 2014 at 3:14pm
आपकी चार पंक्तियाँ ही तो इस लेख का सार है अखिलेश भाई ,बहुत सुंदर लिखा ,बात थोड़ी -थोड़ी भी लोगों तक जाए तो कुछ असर लाए |विषय चिंतनीय है और आजकाआज करनीय |बहुत सुंदर लगा आपका लेख पर समय देना |
हाँ ,मैं मंच पर आता रहा हूँ किन्तु टिप्पणी करने की सुबिधा से वंचित था , योगराज भाई से अपना दुखड़ा बताया तो निवारण मिला |
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on June 15, 2014 at 8:46am

आदरणीय विजय भाई,

बहुत दिन के बाद आपको ओबीओ में देखकर अच्छा लगा। पर्यावरण पर इतना सुंदर और ज्ञान वर्धक लेख कम ही पढ़ने में आया है, गुरुजनों और छात्रों  के लिए भी फायदेमंद है॥ हार्दिक बधाई स्वीकार करें । चार पंक्तियों में सुझाव और चेतावनी से अपनी बात खत्म कर रहा हूँ।

आधी धरती वन में बदलो, हरा भरा शहरों को कर दो।

ज़हर उगलते उद्योगों को, आज अभी से बंद कर दो॥

आने वाली पीढ़ी वरना, साँस  नहीं ले पाएगी।

चर्चा होगी जब भी हमारी, नफरत से भर जाएगी॥

Comment by विजय मिश्र on June 14, 2014 at 12:59pm
आ० बहन महिमा श्रीजी , लेख ने आपको सोचने और अनुकरण केलिए प्रेरित किया , यह इसकी सार्थकता के लिए प्रयाप्त है |ह्रदय से आभारी हूँ |
Comment by विजय मिश्र on June 14, 2014 at 12:55pm
आदरणीया बहन दीपिकाजी ! स्नेह एवं अनुशंसा हेतु साधुवाद |
Comment by विजय मिश्र on June 14, 2014 at 12:51pm
विजयजी . जब भी मैं आपसे बात करता हूँ तो स्वेम को औपचारिकताओं से मुक्त पाता हूँ |मैंने कोरी कल्पना से कोई डरावना दृश्य उपस्थित नहीं कियी है , यह आजके सच का एक Engineer's Opinion है जिसे आप मित्रों के साथ सचेष्ट प्रयास की अपेक्षाओं के साथ साझा किया |
आप प्रभावित हुए तथा मेरे स्वर को अपना स्वर भी दिया ,लेख का उदेश्य प्रतिफलित हो रहा है |आभार भाई |
Comment by विजय मिश्र on June 14, 2014 at 12:39pm
श्रध्येय सौरभजी ! मंच के मूर्धन्य हस्ताक्षरों की लेख पर उपस्थिति और सराहना , सभी मित्रों से इसे एकबार पढ़ने का आपका आग्रह रोम-रोम से पुलकित कर गया |धन्य हुआ और अनुगृहित हूँ , आभार |
Comment by विजय मिश्र on June 14, 2014 at 12:30pm
आदरणीया प्राची बहन , लेख से आपका प्रभावित होना ,पुनः स्नेह और अनुराग पूर्वक टंकण त्रुटियों के लिए मार्गदर्शन करना अप्रतिम लगा -" टंकण त्रुटियाँ कई जगह रह गयी हैं..एक बार पुनः पूरे आलेख को देख जाएं और उन्हें अवश्य ही सुधार लें|"
दरअसल मैं अपनी बात समझा पाया और विषय स्पष्ट हो गया ,यही तृप्ति केलिए प्रयाप्त है |स्वतंत्र अध्ययन की अनुकम्पा है कि मैं इतना भी रख पाता हूँ ,संकोच नहीं कि भाषा के विज्ञान और विवरण का दोष निवारित करना मेरी क्षमता से आगे की वस्तु है |क्षमा करें अथवा दया करें |सराहना केलिए हार्दिक आभार |
Comment by MAHIMA SHREE on June 14, 2014 at 10:15am

सोचनीय और अनुकरणीय आलेख ,, बहुत -२ हार्दिक बधाई सादर

Comment by Deepika Dwivedi on June 12, 2014 at 6:33pm

बहुत सुंदर कथ्य न केवल पठनीय वरन चिंतनीय  अनुकरणीय ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
23 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service