2122 2122 2122 212
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शब्द अबला तीर में अब नार ढलना चाहिए
हर दुशासन का कफन खुद तू ने सिलना चाहिए
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लूटता हो जब तुम्हारी लाज कोई उस समय
अश्क आँखों से नहीं शोला निकलना चाहिए
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गिड़गिड़ाने से बची कब लाज तेरी द्रोपदी
वक्त पर उसको सबक कुछ ठोस मिलना चाहिए
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हर समय तो आ नहीं सकता कन्हैया तुझ तलक
काली बन खुद रक्त बीजों को कुचलना चाहिए
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फूल बनकर दे महक उपवन को यूँ तो रोज तू
ज्वाल भी बन, जो उठे वो हाथ जलना चाहिए
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रचना - 20 मई 2014
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आदरणीया प्राची बहन सबसे पहले गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद । आज नारी के समर्थवान होते हुए भी जो दुर्दशा हो रही है उसमें कहीं न कहीं संस्कारगत कमी भी जिम्मेदार है । पहले गली मुहल्ले की लडकियों को बहन बेटी समझा जाता था आज संस्कारों की कमी के चलते उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा है । घर परिवार से अच्छे संस्कार मिलें तो शायद कुछ बदलाव आ सके ।
आपने भी आ0 शकील जम्शेद्पुरी जी के कहे से इत्तेफाक रखने की बात कही है । मुझे हर्फे रवी दोष के बारे में ज्ञान नहीं था या यूं कहें कि मैं इसे ठीक से समझ नहीं पाया यदि इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे सकें तो आभारी रहूंगा । सादर.....
आदरणीय भाई नरेन्द्र चैहान जी गजल की तारीफ के लिए हार्दिक धन्यवाद कबूलें ।
आदरणीया मीना बहन गजल की सराहना के लिए दिली आभार ।
आदरणीय भाई जवाहर लाल जी गजल का अनुमादन करने के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई नीलेश जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद कबूलें ।
आदरणीय भाई शकील जमशेदपुरी जी सबसे गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद साथ ही इकवा दोष के लिए भी । दरअसल मुझे इस दोष के विषय में अधिक जानकारी नहीं । आपसे नम्र निवेदन है कि सम्भव हो तो इस दोष के विषय में विस्तार से बताकर ज्ञान वर्धन कराएं आभारी रहूंगा ।
आदरणीय राजेश कुमारी जी। मेरे विचार से मतले में ईता दोष नहीं है। क्योंकि वकाफी 'ढलना' और 'सिलना' का हर्फे रवी (ल) समान है। हां इसमें इकवा दोष जरूर है। क्योंकि हर्फे रवी से पहले लघु स्वर का विरोध हो रहा है। सादर।
बहुत शानदार ओजपूर्ण ग़ज़ल लिखी है सभी अशआर प्रभावित कर रहे हैं ...मतले में ईता दोष मैं भी मान रही हूँ दूसरे तूने सिलना चाहिए की बजाय तुझको सिलना होना चाहिए था ,खैर वो तो आप दुरुस्त कर लेंगे ये विशवास है फिलहाल हार्दिक बधाई लीजिये इस ग़ज़ल पर
जब तक नारी अपनी रक्षा स्वयम करना न सीखे तब तक वह लुटती रहेगी..आपके जोशीली रचना समस्त नारी के लिये एक प्रेरणा है.धामी जी आपको बहुत बहुत बधाई.
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